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• व्यक्तित्व एवं कृतित्व
गुमानचन्दजी म. सुतीक्षण प्रज्ञावान संत थे। उनके शिष्य प्राचार्य रतनचन्दजी म. महान् क्रिया उद्धारक, धीर, गंभीर, परम तेजस्वी सन्त थे। इनके नाम से ही रत्नचन्द्र सम्प्रदाय चला है। प्राचार्य रतनचन्दजी म. उत्कृष्ट संयम-साधक होने के साथ-साथ महान् कवि थे। इनके शिष्य आचार्य हमीरमलजी म. हुए, जो परम गुरु-भक्त, विनय मूर्ति और तेजस्वी थे । इनके शिष्य प्राचार्य कजोड़ीमलजी म. कुशाग्र बुद्धि के धनी थे। इनके शिष्य आचार्य विनयचन्द्रजी म. हुए, जो ज्ञान-क्रिया सम्पन्न विशिष्ट कवि थे। इनकी कई रचनाएँ प्राचार्य विनयचन्द्र ज्ञान भण्डार में हस्तलिखित कृतियों में सुरक्षित हैं। इनके शिष्य आचार्य शोभाचन्द्रजी म. सेवाव्रती, सरल स्वभावी और क्षमाशील संत थे। इन्हीं के चरणों में श्री हस्तीमलजी म. सा. ने जैन भागवती दीक्षा • अंगीकृत की।
उपर्युक्त उल्लेख से यह स्पष्ट है कि आचार्य श्री जिस जैन सम्प्रदाय से जुड़े, उसमें साधना के साथ-साथ साहित्य-सृजन की परम्परा रही । प्राचार्य विनयचन्द्रजी म. के अतिरिक्त इस सम्प्रदाय में श्री दुर्गादासजी म., कनीरामजी म., किशनलालजी म., सुजानमलजी म. जैसे सन्त कवि और महासती जड़ाव जी, भूरसुन्दरीजी जैसी कवयित्रियाँ भी हुई हैं । अतः यह कहा जा सकता है कि आचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा. ने उत्कृष्ट संयम-साधना के साथ-साथ साहित्य-निर्माण एवं काव्य-सर्जना को समृद्ध और पुष्ट कर रत्न सम्प्रदाय के गौरव को अक्षुण्ण रखते हुए उसमें वृद्धि की।
। आचार्य श्री हस्ती बहुमायामी प्रतिभा के धनी, आगमनिष्ठ चिन्तक साहित्यकार थे । आपने समाज में श्रुतज्ञान के प्रति विशेष जागृति पैदा की और इस बात पर बल दिया कि रूढ़ि रूप में की गई क्रिया विशेष फलवती नहीं होती। क्रिया को जब ज्ञान की आँख मिलती है, तभी वह तेजस्वी बनती है। स्वाध्याय संघों की संगठना और ज्ञान-भण्डारों की स्थापना की प्रेरणा देकर आपने एक ओर ज्ञान के प्रति जन-जागरण की अलख जगाई है तो दूसरी ओर स्वयं साहित्य-साधना में रत रहकर साहित्य-सर्जना द्वारा माँ भारती के भण्डार को समृद्ध करने में अपना विशिष्ट ऐतिहासिक योगदान दिया।
आपकी साहित्य-साधना बहुमुखी है। इसके चार मुख्य आयाम हैं :१. आगमिक व्याख्या साहित्य, २. जैन धर्म सम्बन्धी इतिहास साहित्य, ३. प्रवचन साहित्य और ४. काव्य-साहित्य । यहाँ हम काव्य साहित्य पर ही चर्चा करेंगे।
आचार्य श्री प्राकृत, संस्कृत, राजस्थानी, हिन्दी आदि भाषाओं के प्रखर
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