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________________ • प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा. को धर्म की ओर आकर्षित करने वाला यदि कोई बर्तमान युग में था तो वे आचार्य प्रवर हस्तीमल जी म० सा० थे । विशेष कर शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े परिवारों का लाभ धर्म एवं समाज को सदैब मिलता रहे, इस हेतु नवीनतम योजना स्वाध्यायी बन्धु बनाना, आपकी सूझ-बूझ का ही परिचायक है । लक्ष्मीपुत्रों को सरस्वती भक्त बनाने का अद्भुत कार्य आपने ही किया । बुद्धिमान को विद्वान् एवं विद्वान् को ज्ञानी बनाने की कला में आप पारंगत थे । आप न केवल अध्यात्म-योगी थे वरन् एक ऐसे पारस महापुरुष थे जो न केवल लोहे को स्वर्ण बनाते थे, अपितु उस भी पारस बना देते थे । · पारगामी प्रज्ञा पुरुष - परिस्थिति को पहचानने में आप पारंगत थे । तलतल में पहुँचने की शक्ति आपमें विद्यमान थी । व्यक्ति के चेहरे के भीतर झाँककर आप देख लेते थे कि इस व्यक्ति के जीवन को सुघड़ बनाने के लिए किस प्रकार के उपचार की आवश्यकता है । बहुत से व्यक्ति आपको भविष्यद्रष्टा के रूप में मानते हैं । इस सम्बन्ध में ग्रापका स्पष्ट दृष्टिकोण था कि यदि व्यक्ति अपने गुणों का विकास करेगा तो उसकी जीवन-यात्रा निर्विघ्न सम्पन्न होगी, गुणों की वृद्धि का कहीं अहंभाव जागृत ना हो जावे, इसके लिए श्रेय महापुरुषों के चरणों में अपने को अर्पित करना चाहिए। सादगी एवं सौम्य सद्भावना से प्रोतप्रोत दिव्य नेत्र, प्रसन्नचित्त मुद्रा सहज रूप से सबको आकर्षित करती थी । अल्प निद्रा, अल्प उपकरण, अल्पभाषी ये कुछ ऐसी विशेषताएँ थीं जिनके कारण आप भक्तों के मध्य आराध्य बने रहे । श्रेष्ठ श्रमण जीवन की साधना करते हुए स्वाध्याय, ध्यान और मौन की त्रिवेणी में श्राप तल्लीन रहे । आपके जीवन का एक ही लक्ष्य रहा कि "मैं ऐसे स्थान पर पहुँचना चाहता हूँ जहां ले लौटकर कभी वापस न आना पड़े ।" इस उद्देश्य की प्राप्ति में आप अनवरत निमग्न रहते थे । आप कहा करते थे निशिदिन नयनन में नींद न आवे, तब ही नर नारायण बन पावे । Jain Educationa International ६६ उनके अंतर हुआ प्रकाश अपने अंतर करो प्रकाश - अपने भीतर प्रकाश करने का दिव्य संदेश देते हुए, इस नश्वर काया को आपने आत्म समाधि में लीन होकर छोड़ी एवं हम सबके मार्गदर्शक बनकर आप अमर हो गए। आपकी पारगामी विद्या का हम यदि रंच मात्र भी अध्ययन कर सकें तो आपके प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी । For Personal and Private Use Only गुण छत्तीसी पूरिया, सुन्दर नै सुखमाल । ऐसे प्राचारज तणा, चरण नमूं तिरकाल || - प्रधानाचार्य, छोटी कसरावद ( जिला खरगोन ) ४५१२२८ www.jainelibrary.org
SR No.003843
Book TitleJinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1992
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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