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• प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा.
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का एक साथ मिलना व सम्पर्क बना रहता है । इस विद्वत् परिषद की शुरूआत हमारे देश के मध्यभाग मध्यप्रदेश एवं मध्यप्रदेश के हृदय मां अहिल्या की नगरी इन्दौर में ही आचार्य श्री के सन् १९७८ के चातुर्मास के समय हुई। आचार्य श्री के पदार्पण से यह रत्नत्रय की सुन्दर आराधना-साधना हुई एवं म. प्र. जैन स्वाध्याय संघ, महावीर जैन स्वाध्याय शाला, श्री गजेन्द्र जैन स्वाध्याय ध्यान पीठ इत्यादि की स्थापना हुई । ये सभी अभी जिन-सेवा में समर्पित हैं।
आचार्य श्री का जीवन आदर्श जीवन था । उनका कहना था कि मतभेद तो हो सकते हैं विचारों के, किन्तु मनभेद नहीं होना चाहिए। इसी कारण से किसी दार्शनिक ने कहा है-"व्यक्ति अमर नहीं रहता, परन्तु उसके विचार कभी नहीं मरते । वे वर्तमान युग को प्रेरणा देते हैं, भावी युग को आशा का मधुर सन्देश देते हैं।" महापुरुषों की ज्योति का आलोक भरा रहता है, न जाने कब एवं किस समय, किस व्यक्ति को उसकी वाणी से प्रेरणा मिल जाए....जिनका जीवन जयवंत रहा है, उनके जीवन का अंत भी जयपूर्वक हुआ, समाधिपूर्वक हुा । ऐसे जयवंत आचार्य श्री के पावन पद-पंकजों में उतमांग शीश झुकाते हुए हम श्रद्धा से वंदन-अभिनन्दन करते हैं ।
-१७५, महात्मा गांधी मार्ग, देपालपुर (इन्दौर) ४५३११५
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अमृत-करण
* अज्ञान और मोह के दूर होने पर भीतर में आत्म
बल का तेज जगमगाने लगता है। * यदि आत्मा को बलवान बनाना है तो त्याग को
और अच्छाई को आचरण में लाना होगा।
-प्राचार्य श्री हस्ती
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