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शक्तिपुंज प्राचार्य श्री
श्रीमती मंजुला प्रार० खिंवसरा
स्वस्थ जीवन की दो धारा हैं-लौकिक और लोकोत्तर । लौकिक धारा के अन्तर्गत रहने वाले जीवन को हम व्यावहारिक जीवन कह सकते हैं । लोकोत्तर जीवन जीने वाले के लिए आध्यात्मिक जीवन धारा का प्रयोग किया जा सकता है ।
संसार में जन्म लेने वाला प्रत्येक प्राणी, जीवन को सर्वांगीण सफल बना ले, असम्भव है । विरले ही व्यक्ति अपने जीवन को उज्ज्वल बनाने में सफल होते हैं । व्यावहारिक एवं प्राध्यात्मिक दोनों क्षेत्रों में यही बात है । प्रत्येक व्यक्ति में जीवन को सफल व निष्फल बनाने की तीन शक्तियां उपलब्ध होती हैं । इन्हीं तीन शक्तियों से व्यक्ति अपने जीवन का सुखद निर्माण कर सकता है और दुखद भी । विद्या, धन और शक्ति - ये तीन अमूल्य निधियां हैं, जो हर व्यक्ति को अल्प या अधिक मात्रा में अवश्य मिलती हैं । पवित्र और महान् श्रात्माएँ इन तीनों शक्तियों का सदुपयोग करके जीवन को यशस्वी बना लेती हैं । दुष्टात्माएँ इन्हीं तीन शक्तियों से अपने जीवन को अधम, निकृष्ट बना लेती हैं । वे लोग जिनके पास विद्या है और प्रकृति निम्न स्तर की है, तो विद्या का उपयोग दूसरों को कष्ट पहुँचाने में करेंगे । धन का आमोद-प्रमोद, एशो-आराम और शक्ति का दूसरों के जीवन को नष्ट-भ्रष्ट करने में, पर इन्हीं शक्तियों का सज्जन-जन सदुपयोग करते हैं । विद्या से निर्माण, धन से परोपकार और शक्ति से स्व-पर रक्षण । ऐसे शक्ति-पुंज जिनको हम योद्धा, भट्ट, मल्ल के नाम से भी सम्बोधित कर सकते हैं ।
आज हम और आप जिनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व के सन्दर्भ में चर्चा कर रहे हैं, वे हैं हमारे आचार्य हस्तीमल । हस्ति, याने हाथी, स्वयं मल्ल या योद्धा का कार्य करता है । वह एक बलवान प्राणी होता है, शक्ति का पुंज होता है । इसी तरह हर काल में कोई न कोई विशिष्ट शक्ति-पुंज हुए हैं । काल के चार विभाग हैं - सतयुग, द्वापर, त्रेता एवं कलियुग ।
१. सतयुग में जो मल्ल ( शक्ति - पुंज) हुए वे हैं - ऋषभदेव के समय में बाहुबली ।
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