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• व्यक्तित्व एवं कृतित्व
जिसने अच्छी तरह जीना सीखा उसने अच्छी तरह मरना भी सीख लिया था । किसी भी शिष्य व अनुयायी का दिल न दुखाते हुए प्रारम्भ की अपनी अन्तिम साधना । उपवास किया, बेला किया, तेला किया, फिर पारणा न करके अत्यन्त प्रमोद भाव से संथारा लेकर अपने आंतरिक आत्म-भावों की उत्कृष्टता का उदाहरण रखा दुनिया के सामने । जिस साधक ने विश्व को धर्म का सन्मार्ग बताया, उस साधक ने संथारा लेकर समता का उत्कृष्ट यथार्थ रूप भी बताया । जीवन के अंतिम दिनों में उत्कृष्ट समता धारी, १३ दिनों के संथारा काल में किसी प्रकार की उफ व आह तक नहीं की । अपने स्वरूप-रमण में मस्त बने रहे । सब कुछ होते हुए भी निर्मोही बन गए । निज की मस्ती में झूमने लगे । क्या आकर्षण था साधना का । जैन-अजैन सभी आकर्षित हो रहे थे दर्शन करने को। इस महान विभूति का दर्शन करते-करते अांखें थकती नहीं थीं।
जीवन के अंतिम काल में जब वे अत्यन्त समता के साथ प्रांतरिक साधना में लीन थे, उस समय भी इस साधक की साधना ने हिंसक प्रवृत्ति के लोगों को भी अहिंसा की ओर आकर्षित किया । मुस्लिम भाइयों के मन में अपने आप इच्छा जागी कि एक महान आत्मा हमारे गांव में आकर अंतिम साधना में लीन है। जब तक यह आत्मा विद्यमान रहेगी तब तक हम हिंसा के काम नहीं करेंगे । सैकड़ों जीवों को अभयदान मिल गया इस महान् आत्मा के निमित्त से । अपने वर्षों पहले बनाए भजन "मैं हूँ उस नगरी का भूप, जहां नहीं होती छाया धूप" का अक्षरशः मूर्त रूप दिया गुरुवर ने। जीने और मरने की जो सुन्दर योजना इस आत्मा ने की, यह भी कम आश्चर्य की बात नहीं । मर कर भी मृत्युंजयी बन गए २१ अप्रेल १६६१ को।
ज्ञानी-प्राचार्य श्री इस युग के महान् ज्ञानी पुरुष थे । लोगों के मनोगत भावों को जानने की अद्भुत क्षमता थी उनमें । एक बार आचार्य श्री भोपालगढ़ पधारे । ५-१० दिन रुकने के बाद उनकी इच्छा कोसाणा की तरफ विहार की हुई । तब मुझे कहा कि तुम कोसाणा वालों को संकेत कर देना । मैंने सोचा-कोसाणा वालों को सन्देश देने से कोसाणावासी यहां आयेंगे और आचार्य श्री यहां से जल्दी विहार कर जायेंगे । अतः कुछ दिन बाद सन्देश दूंगा और श्री ब्रजमोहनजी को भी बोल दिया कि कोसाणा सन्देश मत देना ताकि प्राचार्य श्री के ज्यादा विराजने का लाभ भोपालगढ़ श्री संघ को मिल सकेगा । दूसरे दिन दर्शन करने गया तब प्राचार्य श्री एक दम कहने लगे "भावना के वश कोसाणा समाचार नहीं । घर का अफसर होता है तब ऊपर की फाइल नीचे और नीचे की फाइल ऊपर ।" मैं गद्गद्
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