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इत्तरिय मरणकाला य, अरणसरणा दुविहा भवे । इत्तरिय सावकखा, निरवकखा उ विइज्जिया ॥ ६ ॥
अनशन के इत्वर-अल्पकालिक और मरणकाल पर्यन्त ऐसे दो भेद होते हैं । इत्वर-तप सावकांक्ष होता है, नियतकाल के बाद उसमें आहार ग्रहण किया जाता है, पर दूसरा निरवकांक्ष होता है, उसमें जीवन पर्यन्त सम्पूर्ण आहार का त्याग होता है ।
इत्वर तप के भेद :
व्यक्तित्व और कृतित्व
जो सो इत्तरियतवो, सो समासेण छब्बि हो । सेढितवो पयरतवो घणो य तह होइ वग्गो य ॥ १०॥
इत्वर तप संक्षेप से छः प्रकार का है, जैसे- १. श्रेणि तप ( उपवास आदि क्रम से छः मास तक ), २. प्रत्तर तप, ३. घन तप, ४. तथा वर्ग तप होता है ।
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तत्तोय वग्गवग्गो, पंचमी छट्टों पइण्णतवो । मणइच्छियचित्तत्थो, नायव्वो होय इत्तरि ॥ ११ ॥
फिर पाँचवाँ वर्ग तप और छठा प्रकीर्ण तप होता है, इस प्रकार इत्वर तप, साधक की इच्छा के अनुकूल और विचित्र अर्थ वाला समझना चाहिये । इससे लोक एवं लोकोत्तर के विविध लाभ होते हैं ।
मरणकाल :
जा सा अरणसरणा मरणें, दुविहा सा वियाहिया |
सवियार मवियारा, कायचिट्ठे पर भवे ॥१२॥
मरणकाल में जो अनशन किया जाता है, वह दो प्रकार का कहा गय है - काय चेष्टा को लेकर एक सविचार और दूसरा ग्रविचार चेष्टा रहित होता है ।
प्रकारान्तर से अनशन को समझाते हुए कहा है
हवा सपरिकम्मा, अपरिकम्मा य आहिया नीहारिमनीहारी, आहारच्छेप्रो दो वि ||१३||
- संपरिकर्म और अपरिकर्मं
आजीवन अनशन प्रकारान्तर से दो प्रकार का - रूप से कहा गया है । शरीर की उत्थान आदि क्रिया और जिसमें सम्भाल की
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