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________________ • ३२८ • व्यक्तित्व एवं कृतित्व रुक जाता है । नया कर्मबन्ध रोक देने पर भी पूर्वबद्ध कर्मों की सत्ता बनी रहती है। उनसे पिण्ड छुड़ाने का उपाय तपश्चर्या है । तपश्चर्या से पूर्वबद्ध कर्म विनष्ट हो जाते हैं। . भगवान् महावीर ने तपश्चर्या को विशाल और आन्तरिक स्वरूप प्रदान किया है । साधारण लोग समझते हैं कि भूखा रहना और शारीरिक कष्टों को सहन कर लेना ही तपस्या है, किन्तु यह समझ सही नहीं है । इन्द्रियों को उत्तेजित न होने देने के लिए अनशन भी आवश्यक है, ऊनोदर अर्थात् भूख से कम खाना भी उपयोगी है, जिह्वा को संयत बनाने के लिए अमुक रसों का परित्याग भी करना चाहिए, ऐश-आराम का त्याग करना भी जरूरी है, और इन सब की गणना तपस्या में है, किन्तु सत्साहित्य का पठन, चिन्तन, मनन करना, ध्यान करना अर्थात् बहिर्मुख वृत्ति का त्याग कर अपने मन को प्रात्मचिन्तन में संलग्न कर देना, उसकी चंचलता को दूर करने के लिए एकाग्र बनाने का प्रयत्न करना, निरीह भाव से सेवा करना, विनयपूर्ण व्यवहार करना, अकृत्य न होने देना और कदाचित् हो जाय तो उसके लिए प्रायश्चित्त-पश्चात्ताप करना, अपनी भूल को गुरुजनों के समक्ष सरल एवं निष्कपट भाव से प्रकट कर देना, इत्यादि भी तपस्या के ही रूप हैं। इससे आप समझ सकेंगे कि तपस्या कोई हौया' नहीं है, बल्कि उत्तम जीवन बनाने के लिए आवश्यक और अनिवार्य विधि है। जीवन की महानता संयम और तप से : जिसके जीवन में संयम और तप को जितना अधिक महत्त्व मिलता है, उसका जीवन उतना ही महान् बनता है । संयम और तप सिर्फ साधु-सन्तों की चीजें हैं, इस धारणा को समाप्त किया जाना चाहिए । गृहस्थ हो अथवा गृहत्यागी, जो भी अपने जीवन को पवित्र और सुखमय बनाना चाहता है, उसे अपने जीवन में इन्हें स्थान देना चाहिए। संयम एवं तप से विहीन जीवन किसी भी क्षेत्र में सराहनीय नहीं बन सकता । कुटुम्ब, समाज, देश आदि की दृष्टि से भी वही जीवन धन्य माना जा सकता है जिसमें संयम और तप के तत्त्व विद्यमान हों। संयम : जीवन का ब्रेक : मोटर कितनी ही मूल्यवान क्यों न हो, अगर उसमें 'ब्रक' नहीं है तो किस काम की? ब्रेक विहीन मोटर सवारियों के प्राणों को ले बैठेगी। संयम जीवन का ब्रेक है । जिस मानव में संयम का 'ब्रक' नहीं, वह आत्मा को डुबा देने के सिवाय और क्या कर सकता है ? मोटर के 'क' की तरह संयम जीवन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003843
Book TitleJinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1992
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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