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________________ · प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा. प्रकार के ध्यान में वीतराग भाव की साधना करने वाले आचार्य उपाध्याय अथवा साधु सद्गुरु का ध्यान मुद्रा या प्रवचन मुद्रा में चिन्तन करना भी रूपस्थ ध्यान का ही अंग समझना चाहिये । · ४. रूपस्थ ध्यान के स्थिर होने पर अमूर्त, अजन्मा और इन्द्रियातीत परमात्मा के स्वरूप का चिन्तन करना रूपातीत ध्यान कहा जाता है । जैसा कि आचार्य शुभचन्द्र ने कहा है : चिदानन्दमयं शुद्ध - ममूर्तं परमाक्षरम् । स्मरेद् यत्रात्मनात्मानं, तद्रूपातीतमिष्यते ॥ ३१३ इस चौथे - रूपातीत ध्यान में चिदानन्दमय शुद्ध स्वरूप का चिन्तन किया जाता है । Jain Educationa International — ज्ञानार्णव, स० ४०– इस प्रकार पिण्डस्थ और रूपस्थ ध्यान को साकार श्रौर रूपातीत ध्यान को निराकार ध्यान समझना चाहिये । पदस्थ ध्यान में अर्थ चिन्तन निराकार और अष्टदल कमल आदि पर पदों का ध्यान करना साकार में अन्तर्हित होता है । ध्यान में शान्ति : संसार के प्राणिमात्र की एक ही चिरकालीन अभिलाषा है - शान्ति । धनसम्पत्ति, पुत्र, मित्र और कलत्र आदि बड़ी से बड़ी सम्पदा, विशाल परिवार और मनोनुकूल विविध भोग सामग्री पाकर भी मानव बिना शान्ति के दुःखी एवं चिन्तित ही बना रहता है। बाहर-भीतर वह इसी एक खोज में रहता है कि शान्ति कैसे प्राप्त हो, किन्तु जब तक काम, क्रोध, लोभादि विकारों का अन्तर में विलय या उन पर विजय नहीं कर लेता तब तक शान्ति का साक्षात्कार सुलभ नहीं । बिना शान्ति के स्थिरता और एकाग्रता नहीं तथा बिना एकाग्रता के पूर्ण ज्ञान एवं समाधि नहीं, क्योंकि ध्यान साधना ही शान्ति, स्थिरता और समाधि का एक मात्र रामबाण उपाय है । For Personal and Private Use Only उस शान्ति की प्राप्ति हेतु शास्त्रीय ध्यानपद्धति को आज हमें पुनः सक्रिय रूप देना है । प्रातः काल के शान्त वातावरण में अर्हत् देव को द्वादशवार वन्दन कर मन में यह चिन्तन करना चाहिये - "प्रभो ! काम, क्रोध, भय और भादि दोषों से आप सर्वथा अलिप्त हैं । मैं अज्ञानवश इन दोषों में से किनकिन दोषों को नहीं छोड़ सका हूँ; मेरे अन्दर कौनसा दोष प्रबल है ?" www.jainelibrary.org
SR No.003843
Book TitleJinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1992
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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