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• व्यक्तित्व एवं कृतित्व
चाहिए । द्रव्य नय जो गुण पर्याय को प्रात्म-द्रव्य से भिन्न नहीं मानते, उनकी दृष्टि से संयमादि गुणवान् आत्मा ही सामायिक है और पर्याय नय की अपेक्षा समभाव लक्षण गुण को सामायिक कहा गया है, किन्तु जनमत निश्चय और व्यवहार उभयात्मक है। उसमें अकेले व्यवहार और अकेले निश्चय को कार्य साधक नहीं माना जाता, व्यवहार में जप-तप स्वाध्याय एवं ध्यान में संयत जीवन से रहना और सादे वेश-भूषा में शांत बैठकर साधना करना सामायिक है । राग द्वेष को घटाना या विकारों को जीत लेना सामायिक का निश्चय पक्ष है । साधक को ऐसा व्यवहार साधन करना चाहिए, जो निश्चय के निकट पहुँचावे । साधना करते हुए भी आत्मा में रागद्वेष की मंदता प्राप्त नहीं हो तो सूक्ष्म दृष्टि से देखना चाहिए कि व्यवहार में कहाँ गलती है।
____ अभ्यास में बड़ी शक्ति है। प्रति दिन के अभ्यास से मनुष्य अलभ्य को भी सुलभ कर लेता है । यह ठीक है कि मानसिक शांति के बिना सामायिक अपूर्ण है। साधक उसका पूर्ण आनन्द नहीं पा सकता, परन्तु अपूर्ण एक दिन में ही तो पूर्ण नहीं हो जाता है। उसके लिए साधना करनी होती है। व्यापार में २-४ रु० मिलाने वाला अभ्यास की कुशलता से एक दिन हजार भी मिला लेता है।
साधक जब तक अपूर्ण है, त्रुटियां हो सकती हैं, पर खास कर विषयकषाय में जिस वृत्ति का जोर हो, सदा उसी पर सद्भावना की चोट मारनी चाहिये। इस प्रकार प्रतिदिन के अभ्यास से सहज ही जीवन स्वच्छ एवं शान्त बन सकेगा। यही जीवन को महान बनाने की कुजी है । जैसे कहा भी है
'सारे विकल्पों को हटा, निज आत्म को पहचानले । संसार-वन में भ्रमण का, कारण इन्हीं को मानले। जड़ भिन्न तेरी आत्मा, ऐसा हृदय में जान तू । बस, लीन हो परमात्मा में, बन जा महान् महान् तू ।' सामायिक सौदो नहीं, सामायिक सम भाव । लेणो-देणो सब मिटै, छूट वैर विभाव ।। १ ।। सामायिक में खरच नीं, वै समता री आय । विषय-भोग सब छूट जा, छूट करम कषाय ।। २ ।।
- -डॉ. नरेन्द्र भानावत
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