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श्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा.
"जो व्यक्ति खुशी के प्रसंग पर उन्माद का शिकार हो जाता है और दुख में आप भूलकर विलाप करता है, वह इहलोक और परलोक दोनों का नहीं रहता ।"" व्यक्ति को सदैव मधुर भाषी होना चाहिए । वाणी को मनुष्य के व्यक्तित्व की कसौटी कहा गया है । "अच्छी वाणी वह है जो प्रेममय, मधुर और प्रेरणाप्रद हो । वक्ता हजारों विरोधियों को अपनी वाणी के जादू से प्रभावित करके अनुकूल बना लेता है । " २
आज शिक्षा, व्यापार, राजनीति आदि प्रत्येक क्षेत्र में अनैतिकता और भ्रष्टाचार का बोलबाला है । तथाकथित धार्मिक नेताओं के कथनी और करनी में बड़ा अंतर दिखाई देता है । उनके जीवन व्यवहार में धार्मिकता का कोई लक्षण नहीं होता । ऐसे लोगों के लिए प्राचार्य श्री ने कहा है"धर्म दिखावे की चीज नहीं है । नैतिकता की भूमिका पर ही धार्मिकता की इमारत खड़ी है | प्रामाणिकता की प्रतिष्ठा ही व्यापारी की सबसे बड़ी पूंजी है ।"3
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मानव की इच्छाएँ प्रकाश के समान अनन्त हैं । उनकी पूर्ति कभी नहीं होती पर अज्ञान में फँसा मानव उनकी पूर्ति के लिए रात-दिन धन के पीछे पड़ा रहता है । इस प्रपंच में पड़ कर वह धर्म, कर्म, प्रभु नाम-स्मरण आदि सभी को विस्मृत कर बैठता है । ऐसे लोगों को प्रेरणा देते हुए प्राचार्य श्री ने कहा है- "सब अनर्थों का मूल कामना - लालसा है ।" जो कामनाओं को त्याग देता है वह समस्त दुखों से छुटकारा पा लेता है ।"४ "मन की भूख मिटाने का एक मात्र उपाय संतोष है । पेट की भूख तो पाव दो पाव आटे से मिट जाती है मगर मन की भूख तीन लोक के राज्य से भी नहीं मिटती ।"" लोभ वृत्ति ही सभी विनाशों का मूल है इसलिये सदैव लोभवृत्ति पर अंकुश रक्खा जाय और कामना पर नियंत्रण किया जाय । प्रभु का नाम अनमोल रसायन है । वस्तु - रसायन के सेवन का प्रभाव सीमित समय तक ही रहता है किन्तु नाम-रसायन जन्म-जन्मांतरों तक उपयोगी होता है । उसके सेवन से आत्मिक शक्ति बलवती हो जाती और अनादि काल की जन्म-मरण की व्याधियां दूर हो जाती हैं ।'
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आचार्य श्री ने प्रार्थना को जीवन में विशेष महत्त्व दिया है । उनका कहना है कि - " वीतराग की प्रार्थना से आत्मा को सम्बल मिलता है, आत्मा
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१. वही, पृ० ३६४ ।
२. वही, पृ० २३२ | ३. वही, पृ० १२ +
४. आध्यात्मिक आलोक पृ० ४२ । ५. वही, पृ० ४४ । ६. वही, पृ० १२८ ।
७. वही, पृ० १२८ ।
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