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________________ • श्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा. · पर पैर रक्खा ही था कि आप संवत् १९८७ वैशाख शुक्ला तृतीया को जोधपुर में चतुर्विध संघ की साक्षी में आचार्य पद पर आरूढ़ किए गए। आप ६१ वर्ष तक आचार्य पद को कुशलतापूर्वक निर्वहन करते रहे । आचार्य पद पर इतना वृहदकाल निर्वहन करने वाले वर्तमान युग में आप एक मात्र प्राचार्य थे । आपके शासनकाल में ८५ दीक्षाएँ हुईं जिनमें ३१ संतगणों की तथा ५४ सतीवृंद की । - आपने संयमकाल में ७० चातुर्मास किए जिनमें से सर्वाधिक जोधपुर में ११ चातुर्मास सम्पादित किए। यह एक सुखद संयोग जोधपुरवासियों को प्राप्त हुआ कि मृत्युंजयी प्राचार्य के जीवनोपरान्त व्यक्तित्व एवं कृतित्व प्रथम गोष्ठी एवं प्रथम चातुर्मास का सुअवसर भी जोधपुरवासियों को प्राप्त हुआ । आचार्य पद पर हीरा मुनि का प्रथम चातुर्मास भी आप भाग्यशालियों को उपलब्ध हुआ, आप भी नाम और कर्म से हीरा ही हैं । 'यथा नाम तथा गुण' उक्ति को सार्थक कर रहे हैं । Jain Educationa International २३५ आचार्य श्री हस्ती गुरु के सिर से पितृ का वरदहस्त जन्म- पूर्व ही उठ गया था अत: आपने माता-पिता का सम्पूर्ण प्यार माता रूपादेवी से ही प्राप्त किया। आपने माता की कर्मठता, धर्मपरायणता, सहिष्णुता, सच्चाई और ईमानदारी को अपने जीवन में धारण किया । प्राचार्य श्री सम्पूर्ण व्यक्तित्व ही नहीं अपितु सम्पूर्ण समाज थे अतः आपको समाज की प्रत्येक दुःखती रग का अच्छा ज्ञान था । आपने समाज की प्रत्येक कमजोर रग का जीवनपर्यन्त इलाज किया । समाज जात-पात, छुआछूत, ऊँच-नीच की जंजीरों में जकड़ा हुआ था । समाज बाल-विवाह, मृत्यु भोज, पर्दाप्रथा, अंध-विश्वास आदि मिथ्या मान्यताओं से त्रस्तथा । शिक्षा की कमी और कुरीतियों के कारण नारी की स्थिति बड़ी दयनीय थी । आपने नारी की प्रशिक्षा, अज्ञानता और सामाजिक स्थिति को सुधारा । नारी यदि शिक्षित और संस्कारवान होती है तो पूरा परिवार संस्कारित होता है । सुपुत्र यदि एक कुल की शोभा, कुल-दीपक है तो नारी दो कुलों की शोभा है, दो कुलों का उजियारा है, अतः आचार्य श्री ने नारी शिक्षा पर विशेष बल दिया । नारी जागृति के बिना समाज अधूरा ही नहीं, अपूर्ण है । अतः आचार्य श्री ने व्यावहारिक शिक्षा के साथ-साथ धार्मिक शिक्षण पर बल दिया | आपने महिलाओं को सामायिक स्वाध्याय करने की प्रेरणा प्रदान की । व्यावहारिक ज्ञान के बिना जीवन रिक्त था तो धार्मिक ज्ञान के बिना जीवन शून्य था, अत: प्राचार्य श्री ने नारी जीवन को पूर्णता प्रदान की । नारी - जागृति के लिए आपने श्री अखिल भारतीय महाबीर श्राविका संघ की स्थापना की प्रेरणा प्रदान की । महावीर श्राविका संघ द्वारा 'वीर उपासिका' नामक मासिक पत्रिका का सम्पादन एवं प्रकाशन किया गया । यह महिलाओं की एक सशक्त और आदर्श पत्रिका बनी । प्रति वर्ष श्राविका संघ का अधिवेशन होता । इन अधिवेशनों में प्राभूषणप्रियता, दहेज प्रथा, समाज में बढ़ते प्रदर्शन, श्राडम्बर, For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003843
Book TitleJinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1992
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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