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________________ • २३२ • व्यक्तित्व एवं कृतित्व हुई समाज की नारियों को अपनी चपेट में लेकर होम कर रही थी। आचार्यश्री इसे मानवीयता के सर्वथा विपरीत मानते थे और इस प्रथा को समूल नष्ट करने हेतु प्रयासरत थे । इस हेतु प्राचार्यश्री ने विशेष प्रयत्न किया । उन्होंने युवाओं में इसके विरोध के संकल्प का प्रचार करने के साथ-साथ स्त्रियों में इसके विरुद्ध जागति उत्पन्न की। वे जानते थे कि यदि युवतियाँ स्वयं इस प्रथा की विरोधी बन जाएँ तो इसमें कोई शक नहीं कि यह प्रथा विनष्ट हो सकती है । अतः उन्होंने इस हेतु एक आम जन-जागृति उत्पन्न की। इन प्रथाओं के विरोध के साथ-साथ ही आचार्यश्री ने नारी व उसके माध्यम से समाज में, सद्प्रवृत्तियों के विकास हेतु समाज की नारियों को महावीर श्राविका संघ बनाने की प्रेरणा दी जिसका मूल उद्देश्य नारियों में धर्माचरण की प्रवृत्ति को और भी प्रशस्त करना है। आज भी अनेकानेक नारियां इस संघ से जुड़ कर धर्म समाज के निर्माण में सक्रिय भूमिका निभा रही हैं । समस्त उद्देश्य, जो संगठन को बनाते समय समक्ष रखे गये थे, आज भी उतने ही प्रासंगिक व व्यापक हैं, जो धर्माराधन की प्रक्रिया को निरन्तर बढ़ावा देने वाले हैं और विनय की भावना के प्रसारक भी हैं जो धर्म का मूल है। इस प्रकार उपयुक्त संघ से संलग्न विभिन्न नारियाँ आज अपने जीवनोद्धार के साथ-साथ परोपकार में भी संलग्न हैं। इस तरह वर्तमान सुदृढ़ समाज के निर्माण में गुरु हस्ती का योगदान नकारा नहीं जा सकता । नारी चेतना के अमूल्य मंत्र से उन्होंने समाज में धर्म व अध्यात्म की जो ज्योति प्रज्वलित की थी उसके आलोक से आज सम्पूर्ण समाज प्रकाशित है। किसी कवि ने अपनी लेखनी के माध्यम से इसकी सार्थक अभिव्यक्ति करते हुए अत्यन्त सुन्दर ढंग से कहा है "प्राचार्यश्री हस्तीमलजी, यदि मुनिवर का रूप नहीं धरते, यदि अपनी पावन वाणी से, जग का कल्याण नहीं करते । मानवता मोद नहीं पाती, ये जीवित मन्त्र नहीं होते, यह भारत गारत हो जाता, यदि ऐसे सन्त नहीं होते ।।" और वास्तव में ऐसे सन्त को खोकर समाज को अपार क्षति हुई है। समाज को नवीन कल्पनाएँ देने वाला वह सुघड़ शिल्पी, चारित्र चूड़ामणि, इतिहास मार्तण्ड आज हमसे विलग होकर अनन्त में लीन हो गया है किन्तु हमें उसे समाप्त नहीं होने देना है । जिन सौन्दर्यमय प्रसूनों को वह अपनी प्रेरणा से महक प्रदान कर समाज-वाटिका में लगा गया है, अब हमें उनकी सुरभि दूर-दूर. तक प्रसारित कर अपने उत्तरदायित्व को निभाना है। तो आइये, हम सभी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003843
Book TitleJinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1992
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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