SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 21
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ • मेहता साहब ने आचार्य भगवन्त को वन्दन किया और श्रीचरणों में बैठ गए । आचार्य भगवन्त ने सहज फरमाया-' आज मुझे एक पत्रकार ने निरुत्तर कर दिया ।' व्यक्तित्व एवं कृतित्व देवेन्द्रराज जी बोले- भगवन् ! किस बात पर ? प्राचार्य भगवन्त ने जो बात हुई, सामने रख दी । मेहता साहब ने कहा- 'भगवन् ! यह काम आपका नहीं, यह तो हमारा काम है, हम इसके लिए प्रयास करेंगे ।' भाई देवेन्द्रराजजी ने उस समय संकल्प लिया । आज जोधपुर में 'शोभा बाल मन्दिर' है जहाँ कई बच्चे जिनके आगे-पीछे कोई नहीं, पलते हैं । ऐसे बच्चे जो या तो सड़क पर लावारिस मिलते हैं या वासना के भूखे लोग वासना पूर्ति के बाद बच्चे छोड़कर चले जाते हैं, ऐसे बच्चों के पालन-पोषण का काम आपके जोधपुर में चल रहा है। कोटा में बहिन प्रसन्न भण्डारी भी इस काम को कर रही हैं । बहिन प्रसन्न भण्डारी ऐसे-ऐसे बच्चों को मातृवत् स्नेह देकर संस्कारित भी करती हैं । आचार्य भगवन्त ने अहिंसा धर्म की स्वयं साधना की और अहिंसा के प्रति अनेक लोगों को जोड़कर महत्त्वपूर्ण योगदान किया । आचार्य भगवन्त की अहिंसा-साधना का जैसा उज्ज्वल रूप था, वैसे ही वे सत्यवचनी थे । प्राचार्य भगवन्त सत्य की साधना के लिए जितनी आवश्यकता होती, उतना ही बोलते । बोलते समय कम बोलना और उतनी मात्रा में बोलना कि अतिचार का सेवन न हो, इसका सदा ख्याल रखते थे । अशक्त अवस्था में भी अगर किसी को आश्वासन मात्र कह दिया कि तेरी बात का ध्यान रखूंगा तो उन्होंने उसे पूरा करने का प्रयास किया, अपना वचन निभाया। वचन पूरा करने में शरीर की व्याधि का आगार रखा होने पर भी उसका पालन किया। जिस स्थान को फरसने को कहा, वे वहाँ पहुँचे । जीवन में मर्यादित नपे-तुले वचन-रत्न का वागरण करने वाले महापुरुष ने जो कह दिया, उसे हर स्थिति में पूरा किया। जहाँ कहीं भी चातुर्मास खोला, वहीं पधारे । Jain Educationa International आचार्य भगवन् महान् उपकारी, करुणासागर, अखण्ड बाल ब्रह्मचारी तेजस्वी महापुरुष थे । उन्होंने निर्दोष प्रतिचार रहित ब्रह्मचर्य व्रत का पालन किया, साथ ही उन्होंने अपने जीवन में सैकड़ों-हजारों ब्रह्मचारी बनाये । ५५ वर्ष की भगवन् की जन्म तिथि मनाने का प्रसंग आया, भगवन् ने जन्म तिथि मनाने की अनिच्छा व्यक्त की । श्रावक समाज के पुनः पुनः आग्रह - अनुरोध के बाद भगवन् ने कहा – ५५ ब्रह्मचारी बनाने का संकल्प पूरा होता हो तो श्रापका सोचना ठीक कहा जा सकता है । भगवन् ब्रह्मचारी थे, अखंड बाल ब्रह्मचारी थे, 'तवेसु वा उत्तम बंभचेरं' का आदर्श रूप उनके जीवन में था इसलिए हर वर्ष जन्म-दिवस पर उतनी उतनी संख्या में ब्रह्मचारी बनते गये । For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003843
Book TitleJinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1992
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy