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________________ १७४ फिर भी गुरुदेव ने इस कठिन कार्य का बीड़ा उठाया और उसे यथाशक्य प्रामाणिक रूप में प्रस्तुत किया। भगवान ऋषभदेव से लेकर वर्तमानकाल तक का प्रामाणिक जैन इतिहास लिखना कोई बच्चों का खेल नहीं था, किन्तु प्राचार्य प्रवर ने अपनी तीक्ष्ण समीक्षक बुद्धि और लगन से इस कार्य को पूरा कर दिखाया और करीब हजार-हजार पृष्ठों के चार भागों में जैन इतिहास ( मध्यकाल तक) लिखकर एक अद्भुत साहस का कार्य किया है । इस इतिहास-लेखन के लिए आचार्य प्रवर को कितने ही जैन ग्रन्थ भंडारों का अवलोकन करना पड़ा। कितने ही मंदिरों और मूर्तियों के अभिलेख पढ़ने पड़े । आचार्य प्रवर का गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तामिलनाडु, राजस्थान, मध्यप्रदेश, दिल्ली में जहाँ कहीं भी विहार हुआ, स्थान-स्थान पर प्राचीन ग्रन्थ भंडारों एवं मंदिरों में हस्तलिखित ग्रन्थों एवं शिलालेखों का शोधकार्यं सतत चलता ही रहा । विश्राम करना तो पूज्य गुरुदेव ने सीखा ही नहीं था । सूर्योदय सूर्यास्त तक निरन्तर लेखन कार्य, संशोधन कार्य आदि चलता रहता था । • इतना कठिन परिश्रम करने पर भी लोंकाशाह के विषय में प्रामाणिक तथ्य नहीं मिल रहे थे । अतः मुझे लालभाई दलपत भाई भारतीय शोध संस्थान अहमदबाद में लोकाशाह के बिषय में शोध करने के लिए मालवणियाजी के पास भेजा । मैंने वहाँ लगातार छः महीने रहकर नित्य प्रातः १० बजे से ४ बजे तक अनेक हस्तलिखित ग्रन्थों का अवलोकन किया और श्री मालवणियाजी के सहयोग से लोकाशाह र लोंकागच्छ के विषय में जो भी प्रमाण मिले, उनकी फोटो कापियां बनवाकर जैन इतिहास समिति, लाल भबन, जयपुर को भेजता रहा । इसी से अंदाज लगाया जा सकता है कि इतिहास लेखन का कार्य कितना श्रमपूर्ण रहा होगा । आचार्यश्री ने वह कार्य कर दिखाया है जिसे करना बड़े-बड़े धुरंधर इतिहासविदों के लिये कठिन था । · व्यक्तित्व एवं कृतित्व भावी पीढ़ी जब भी इस इतिहास को पढ़ेगी वह आचार्यश्री को उनकी इस महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक देन के लिए याद किये बिना नहीं रह सकेगी । - १०/५०५, नन्दनवन नगर, जोधपुर • Jain Educationa International मनुष्य को तात तप्त अवस्था से उबारना अखिलात्मा पुरुष की सबसे बड़ी साधना है । इतिहास मनुष्य की तीसरी आँख है । For Personal and Private Use Only - हजारीप्रसाद द्विवेदी www.jainelibrary.org
SR No.003843
Book TitleJinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1992
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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