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________________ · १६४ 'विपदाओं से मुझे बचाओ यह प्रार्थना मैं नहीं करता । मुड़कर जा रहे हैं बिना भिक्षा ग्रहण किये, अपनी ही किसी कमी को स्वीकारती चंदनबाला के नेत्र आर्द्र हुए और लो बरस पड़े – और भगवान प्रस्तुत हैं दान ग्रहण करने हेतु रवीन्द्रनाथ ठाकुर के 'गीतांजलि' संग्रह में एक कविता है “विपदाओं से बचाओ ।" रविबाबू की विनती है प्रार्थना है, विपदाओं का भय न हो । दुःख से पीड़ित हृदय को भले ही सांत्वना न दो, पर शक्ति दो, दुःखों पर हो मेरी विजय' एक और भी कविता द्रष्टव्य है 'विकसित करो, हमारा अन्तरवर, विकसित करो, हे ! उज्ज्वल करो, निर्मल करो, सुन्दर कर दो, हे ! करो जाग्रत, करो निर्भय, करो उद्यत, निर्भय कर दो हे ! • व्यक्तित्व एवं कृतित्व आप से "प्रार्थना प्रवचन" के पृष्ठ १२७ से कुछ निर्देश उद्धृत करने की अनुमति चाहता हूँ - ' शब्दों का उच्चारण करते-करते इतना भावमय बन जाना चाहिए कि रोंगटे खड़े हो जायं । अगर प्रभु की महिमा का गान करें तो पुलकित हो उठें। अपने दोषों की पिटारी खोलें तो रुलाई आ जाय । समय और स्थान का खयाल भूल जाय - सुधबुध न रहे, ऐसी तल्लीनता, तन्मयता और भावावेश स्थिति जब होती है तभी सच्ची और सफल प्रार्थना होती है ।" Jain Educationa International हिसाब लगायें तो आचार्य श्री हस्तीमल जी महाराज साहब ने समाज को जितना दिया उसके अंश का भी उल्लेख करें तो पर्याप्त समय चाहिए । टीका सहित प्रस्तुत करने में अच्छे शोध और श्रम की मांग है, 'पर स्वारथ के कारने संत लियौ तार', महाराज सा० से प्रत्यक्ष बातचीत, प्रवचन या उनके कृतित्व से जो मूल स्वर प्राप्त होते हैं, उनमें से प्रमुख है परमतत्त्व का स्मरण । सूत्र कहें तो स्वाध्याय को मार्गदर्शक मानना और प्रेम ऐसा जैसे For Personal and Private Use Only जल ज्यों प्यारा माछरी, लोभी प्यारा दाम । माता प्यारा बालका, भक्त पियारा नाम ।। www.jainelibrary.org
SR No.003843
Book TitleJinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1992
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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