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________________ • प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा. • १३५ आवश्यक है। सद् कर्म, ज्ञान, धर्म, साधना, विवेक तथा संयम द्वारा मनुष्य अपने जीवन को उन्नत कर सकता है। प्राहार-शुद्धि, आचार-विचार शुद्धि, परमार्थ-चिंतन तथा समाज-सेवा आदि विषयों की सरल एवं सार्थक व्याख्या करते हुए प्राचार्य श्री ने अपने इन प्रवचनों में मानव जीवन की सार्थकता का मूल मंत्र बतलाया है। आचार्य प्रवर के इन प्रवचनों के मुख्य विषय हैं-मोक्ष मार्ग के दो चरण-ज्ञान और क्रिया, परिग्रह-निवृत्ति, साधन-संयम, विकार-विजय से आत्म-शक्ति का विकास, सदाचार और सद् विचार ही धर्म का आधार, आहार-शुद्धि से प्राचार-शुद्धि, वास्तविक त्याग का स्वरूप, परिग्रह दुःख का मूल, सच्चा त्याग ही धर्म साधना का आधार, चंचल मन को साधना में लगाने के उपाय और पंच महाव्रत, राग-शमन के उपाय और आत्म-साधना से लाभ तथा कामना का शमन, सच्चा श्रावक धर्म आदि । आचार्य श्री ने इन सभी विषयों की व्यावहारिक दृष्टि से विशद व्याख्या करते हुए हजारोंलाखों श्रोताओं तथा पाठकों को लाभान्वित किया है । विश्वास है, इस व्याख्यानमाला के प्रवचन-पराग से मुमुक्षु पाठक अपने अंतरमन को सुवासित कर अपने जीवन को सार्थक एवं सफल बनाने की दिशा में अग्रसर होंगे। सम्यक् ज्ञान प्रचारक मण्डल, जयपुर ने प्राचार्य श्री के विभिन्न स्थानों पर दिये गये प्रबचनों को अनेक भागों में पुस्तकाकार रूप में सुव्यवस्थित एवं सुनियोजित ढंग से प्रकाशित करने का श्लाघनीय कार्य किया है । अत: इस प्रकाशन से जुड़े हुए सभी लोग साधुवाद के पात्र हैं। -५-ख-२०, जवाहर नगर, जयपुर-४ अमृत-करण • व्रत के समय की कीमत नहीं, उसमें कीमत है चित्त की निर्विकारता की। • जिनका चित्त स्वच्छ नहीं है वे परमात्म-सूर्य के तेज को ग्रहण नहीं कर सकते। • तप के कारण आदमी जप के लायक बनता है। -प्राचार्य श्री हस्ती Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003843
Book TitleJinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1992
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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