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________________ · १२४ • स्रोतों के आधार पर, प्रस्तुत किया गया है। इस इतिहास में प्रस्तुत सामग्री धर्म, दर्शन, साहित्य, समाज एवं संस्कृति के लिये कई दृष्टियों से उपयोगी है । व्यक्तित्व एवं कृतित्व इस इतिहास के प्रथम भाग में जैन परम्परा में कुलकर - व्यवस्था पर प्रकाश डाला गया है । भगवान् ऋषभ देव से लेकर भगवान् महावीर तक के चौबीस तीर्थंकरों का जीवन चरित इसमें वरिणत है । प्रसंगवश सिन्धु सभ्यता, वैदिक काल एवं महाकाव्य युग के इतिहास की प्रमुख घटनाओं, राजाओं एवं समाज का विश्लेषण भी इसमें हुआ है । ग्रन्थ के द्वितीय भाग में महावीर के निर्वाण से लेकर १००० वर्ष तक का धार्मिक इतिहास प्रस्तुत किया गया है । इसमें केवलिकाल, दस पूर्वधरकाल, श्रुतकेवलिकाल एवं सामान्य पूर्वधरकाल का विवरण है । यह सामग्री दिगम्बर एवं श्वेताम्बर परम्परा के उद्भव एवं विकास को जानने के लिये महत्त्वपूर्ण है । आगम साहित्य एवं उसके व्याख्या साहित्य पर भी इससे प्रकाश पड़ता है । मौर्ययुग और उसके परवर्ती राजवंशों, विदेशी आक्रान्ताओं तथा विचारक आचार्यों के सम्बन्ध में भी यह ग्रन्थ कई नये तथ्य प्रस्तुत करता है । प्राकृत एवं संस्कृत में लिखित मौलिक ऐतिहासिक सामग्री के परिज्ञान के लिए यह खण्ड विशेष महत्त्व है । इस खण्ड की कतिपय मान्यताएँ एवं निष्कर्ष इतिहासज्ञों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते हैं, जिन पर अभी भी गहन चिन्तन-मनन की आवश्यकता है । 'जैन धर्म का मौलिक इतिहास' का तृतीय भाग किन कठिनाइयों में लिखा गया, इसका विवरण सम्पादक महोदय श्री गजसिंह राठौड़ ने प्रस्तुत किया है। देवद्धि क्षमा श्रमण के स्वर्गारोहण के उपरान्त ४७५ वर्षों के जैन धर्म का इतिहास इस भाग में है । अर्थात् ईसा की लगभग चतुर्थ शताब्दी से नवीं शताब्दी तक की ऐतिहासिक घटनाएँ इसमें समायी हुई हैं । यह काल साहित्य और दर्शन का उत्कर्ष काल है, किन्तु इस समय में ऐतिहासिक सामग्री की प्रचुरता नहीं है । इसलिये यह खण्ड विभिन्न तुलनात्मक सन्दर्भों से युक्त है । यह भाग यापिनी संघ, भट्टारक परम्परा, दक्षिण भारत में जैन धर्म, दार्शनिक जैनाचार्यों के योगदान, गुप्त युग के शासकों आदि पर विशेष सामग्री प्रस्तुत करता है । साहित्यिक सन्दर्भों से इतिहास के तथ्य निकालना दुष्कर कार्य है, जिसे आचार्य श्री जैसे खोजक सन्त ही कर सकते हैं । स्वभावतः इस खण्ड में प्रस्तुत कई निष्कर्ष विभिन्न परम्पराओं के इतिहासज्ञों एवं धार्मिक पाठकों की पुनः चिन्तन-मनन की प्रेरणा देते हैं । इतिहास का अध्ययन करवट बदले, यही इस खण्ड की सार्थकता है । Jain Educationa International वीरनिर्वाण सम्वत् १४७६ से २००० वर्ष तक अर्थात् लगभग ईसा की दसवीं शताब्दी से पन्द्रहवीं शताब्दी तक के जैन धर्म के इतिहास को इतिहास For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003843
Book TitleJinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1992
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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