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________________ • प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा. जन्म, जन्मकाल, राज्याभिषेक, विवाह, वर्षीदान, प्रव्रज्या, तप, केवलज्ञान, तीर्थस्थापना, गणधर, प्रमुख आर्या, साधु-साध्वी आदि का परिवार मान आदि पर जो भी सामग्री मिलती है वह साधारणत: दिगम्बर-श्वेताम्बर परम्पराओं में समान है । जो कुछ भी थोड़ा-बहुत मतभेद है वह श्रुतिभेद और स्मरणभेद के कारण है । (पृ. २२)। यहाँ वह उल्लेखनीय है कि इन तीर्थंकरों के जीवन-प्रसंगों में जो भी व्यक्ति नामों का उल्लेख मिलता है उसका सम्बन्ध ज्ञात/उपलब्ध ऐतिहासिक राजाओं से दिखाई देता है । सम्भव है उन्हीं के आधार पर सूत्रों, नियुक्तियों और पुराणों में उन नामों को जोड़ दिया गया हो। इसलिए उनकी ऐतिहासिकता पर लगा प्रश्नचिह्न निरर्थक नहीं दिखाई देता। तीर्थंकर अरिष्टनेमि का सम्बन्ध हरिवंश और यदुवंश से रहा है। इसी काल में कौरव और पाण्डव तथा श्री कृष्ण वगैरह महापुरुष हुए। मर्यादापुरुषोत्तम राम और वासुदेव लक्ष्मण, तीर्थंकर मुनिसुव्रतनाथ के समय हुए । प्रसिद्ध ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती, अरिष्टनेमि और पार्श्वनाथ के मध्यवर्ती काल में हुआ। वैदिक, जैन और बौद्ध परम्पराओं में इसका लगभग समान रूप से वर्णन मिलता है। जैन परम्परा में वरिणत अरिष्टनेमि, रथनेमि और दृढ़नेमि ने पालि साहित्य में भी अच्छा स्थान पाया है। अतः इतिहास की परिधि में रहकर इन पर भी विचार किया जाना चाहिए। तीर्थंकर पार्श्वनाथ निःसन्देह ऐतिहासिक महापुरुष हैं। पालि साहित्य में उनके शिष्यों और सिद्धान्तों का अच्छा वर्णन मिलता है। प्राचार्य श्री ने पिप्पलाद, भारद्वाज, नचिकेता, पकुध-कच्चायन, अजितकेशकम्बल, तथागत बुद्ध आदि तत्कालीन दार्शनिकों पर उनके सिद्धान्तों का प्रभाव संभावित बताया है । मैंने भी अपनी पुस्तक 'Jainism in Buddhist Literature' में इस तथ्य का प्रतिपादन किया है। ___ यहाँ यह उल्लेखनीय है कि प्राचार्य श्री ने 'निरयावलिका सूत्र' के तृतीय वर्ग के तृतीय अध्ययन में निहित शुक्र महाग्रह के कथानक का उल्लेख करते हुए कहा है कि "सोमिल द्वारा काष्ठमुद्रा मुंह बांधना प्रमाणित करता है कि प्राचीन समय में जैनेतर धार्मिक परम्पराओं में काष्ठमुद्रा से मुख बांधने की परम्परा थी और पार्श्वनाथ के समय में जैन परम्परा में भी मुख-वस्त्रिका बांधने की परम्परा थी। अन्यथा देव सोमिल को काष्ठ मुद्रा का परित्याग करने का परामर्श अवश्य देता। परन्तु मुख-वस्त्रिका का सम्बन्ध पार्श्वनाथ के समय तक खींचना विचारणीय है । राजशेखर के षड्दर्शन प्रकरण से तत्सम्बन्धी उद्धरण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003843
Book TitleJinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1992
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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