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• प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा.
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१३. ज्ञान प्राप्ति के मार्ग-१. सुनकर और २. अनुभव जगाकर । जिस तत्त्व के द्वारा धर्म, अधर्म, सत्य, असत्य जाना जाय वह ज्ञान है, ज्ञान प्रात्मा का गुण है।
१४. संत-सती समाज भी जिनशासन की फौज भी। . संताप हारिणी जिनवाणी की पवित्र पीयूषमयी रसधारा प्रवाहित करें।
कथा-साहित्य-धार्मिक एवं मानस को झकझोरने वाली हैं उनकी धार्मिक कहानियाँ । कथा प्रवचन की प्रमुखता है, प्राचार्य श्री ने आगम के सैद्धान्तिक कथानकों को आधार बनाकर सर्वत्र आगम के रहस्य को खोला है। मूर्छा के लिए राजपुत्र गौतम, आर्द्रकुमार का उदाहरण । सामायिक, स्वाध्याय, तप आदि से पूर्ण कथानक प्रायः सर्वत्र दिखाई पड़ते हैं । तप के लिए चंदना । चोर, साहूकार आदि के उदाहरण भी हैं।
काव्यात्मक दृष्टि-मन के विचारों को किसी न किसी रूप में अवश्य लिखा जाता है। यदि विचार कवितामय बन गया तो गीत धार्मिक, आध्यात्मिक
और सामाजिक भावों से परिपूर्ण मानव को सजग करने लगता है। कभी काव्यचिंतन रूप में होता है, कभी भावना प्रधान, धर्मप्रधान, संयम प्रधान । जैसे :
सुमति दो सुमतिनाथ भगवान् । सिद्ध स्वरूप-अज, अविनाशी, अगम, अगोचर, अमल, अचल, अविकार । जीवन कैसा-जिसमें ना किसी की हिंसा हो (पृ. ६१, भाग ६) साधु-शान्त दान्त ये साधु सही (पृ. १२५) पाराधना-षड्कर्म आराधन की करो कमाई । (पृ. १४२) स्वाध्याय-बिन स्वाध्याय ज्ञान नहीं होवे । (पृ. १९४) महावीर शिक्षा-घृणा पाप से हो, पापी से कभी नहीं । सुन्दर-सुन्दर एक सन्तोष । परिग्रह-परिग्रह की इच्छा सीमित रख लो।
आगम के सजग प्रहरी ने आगम के रहस्य को सर्वत्र खोलकर रख दिया। जिनागम के प्रायः सभी आगमों का सार आपके चिन्तन में है । किन्तु आचारांग, सूत्रकृतांग, ठारणांग, दशवैकालिक, उत्तराध्ययन, नन्दि, कल्पसूत्र आदि के उदाहरण आपकी आगम-साधना पर विशेष बल देते हैं।
-पिऊकुंज, अरविन्द नगर, उदयपुर-३१३००१
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