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________________ • व्यक्तित्व एवं कृतित्व की हिन्दी टीका एवं जैन विश्व भारती, लाडनूं से प्रकाशित 'उत्तरज्झयणाणि' का भी सहयोग लिया गया है । 'दशवकालिक सूत्र' का प्रकाशन मई, सन् १९८३ ई० में सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल, जयपुर से हुआ । यह भी पद्यानुवाद, अन्वयार्थ, भावार्थ एवं टिप्पणियों से अलंकृत है । पद्यानुवाद पं० शशिकान्त झा ने किया है । चतुर्थ अध्ययन के प्राकृत गद्य का भी हिन्दी पद्यानुवाद किया गया है । यह सूत्र पं० बसन्तीलालजी नलवाया की देखरेख में रतलाम से छपा है । इसका भी हिन्दी पद्यानुवाद सरस, सुबोध एवं लयबद्ध है तथा हार्द को प्रस्तुत करता है। उपसंहार : __आचार्य प्रवर ने 'तत्त्वार्थाधिगम' सूत्र का हिन्दी पद्यानुवाद किया था, ऐसा उल्लेख 'प्रश्न व्याकरण सूत्र' के प्रारम्भ में पं० शशिकान्त झा ने अपनी लेखनी से किया है। वह पद्यानुवाद उपलब्ध नहीं हो पाया है । वह भी नितान्त महत्त्वपूर्ण सूत्र है क्योंकि वह श्वेताम्बर एवं दिगम्बर दोनों जैन सम्प्रदायों को मान्य है। श्रुत सेवा की भावना से प्राचार्य प्रवर ने विभिन्न महत्त्वपूर्ण आगमों की टीकाएँ, अनुवाद, विवेचन, पद्यानुवाद आदि प्रस्तुत कर जो तुलनात्मक दृष्टि प्रदान की है तथा आगम-संशोधन को दिशा प्रदान की है वह विद्वद् समुदाय के लिए उपादेय है । आगमों का पाठ-संशोधन हो यह आवश्यक है। एकाधिक पाठों से सुनिश्चित निर्णय नहीं हो पाता है । हिन्दी पद्यानुवाद एवं सरल हिन्दी अनुवाद से सामान्य स्वाध्यायियों का उपकार हुआ है क्योंकि इनके माध्यम से वे आगम की गहराई तक पहुँचने में सक्षम हुये हैं। -सहायक प्रोफेसर, संस्कृत विभाग, जोधपुर विश्वविद्यालय, ३८७, मधुर I-सी रोड, सरदारपुरा, जोधपुर-३४२००३ ★ जिस प्रकार ससूत्र (धागे से युक्त) सुई कहीं गिर जाने पर भी विनष्ट (गुम) नहीं होती, उसी प्रकार ससूत्र (श्रुत-सम्पन्न) जीव भी संसार में विनष्ट नहीं होता। * जिस प्रकार कछुमा आपत्ति से बचने के लिए अपने अंगों को सिकोड़ लेता है, उसी प्रकार पण्डितजन को भी विषयों की ओर जाती हुई अपनी इन्द्रियों को अध्यात्म ज्ञान से सिकोड़ लेना चाहिए । -भगवान महावीर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003843
Book TitleJinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1992
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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