________________
२ε६ ]
[ कर्म सिद्धान्त
के कर्म का फल नहीं वरन् समाज-व्यवस्था का फल है । यदि समाज व्यवस्था में यह नियम हो कि पिता की सम्पत्ति पुत्र को नहीं मिलेगी या कोई व्यक्ति निजी सम्पत्ति नहीं रख सकेगा तो क्या कोई गरीब घर और अमीर घर हो सकता है ? पिता का हक यदि पुत्र को मिलेगा ही नहीं तो पुत्र को नया प्रयत्न करना होगा और वह है उसके कर्म का फल |
परन्तु जब हम कर्म सिद्धांत की आड़ लेते हैं तो व्यवस्था का पोषण करते हैं । पिता की सम्पत्ति पुत्र को मिले और वह उसका भोग करे, यह समाज - व्यवस्था है न कि कर्म - व्यवस्था ।
पूँजीवादी व्यवस्था में जिसके पास उत्पादन का साधन अर्थात् जमीन, सोना, पशु आदि कुछ है, वह आगे संवर्द्धन कर सकता है बशर्ते अपनी सम्पत्ति को सम्हाल कर रखे । परन्तु जिसके पास कोई सम्पत्ति नहीं है उसे जन्म भर मजदूरी के अलावा कोई राह नहीं है ।
अक्सर कहा जाता है कि जो गरीब हैं वे वास्तव में मेहनत नहीं करते और गरीबी में ही मस्त रहना चाहते हैं । लेकिन अध्ययन बताता है कि जो जितने गरीब हैं उतनी ही अधिक कड़ी मेहनत व लम्बे समय तक कार्य करते हैं । अच्छे पद या सम्पत्ति वाला व्यक्ति मेहनत का कार्य या लम्बे घंटों तक कार्य नहीं करते जबकि भूमिहीन मजदूर दिन भर कार्य करके भी रोटी खाने जितना नहीं कमा पाते । धन जोड़ने की बात तो बहुत दूर है ।
धनवान के पुत्र को धनहीन कर गरीब के बराबर की स्थिति में लाकर बराबर का मौका दिया जाय और फिर जो अच्छी स्थिति या कमजोर स्थिति में आवे तो वे उनके कर्म के फल हैं । परन्तु धनवान और गरीब की दौड़ तो बराबरी की दौड़ नहीं है । हम कई बार कहते हैं कि सबके लिये बराबर के अवसर हैं परन्तु यह भ्रम मात्र है । जो धनवान पुत्र है उसे पढ़ने का, पूँजी का, बचपन में अच्छे लालन-पालन सबका लाभ मिला है जबकि गरीब को बचपन
पूरा खाना व पहनने को भी नहीं मिलता । अतः यह कहना कि गरीबी या अमीरी पूर्व कर्म का फल है, यह भ्रम है । यह वर्तमान व्यवस्था का ही फल है, इसे समझना चाहिये ।
बार-बार जब उपदेश देते हैं कि तुम गरीब हो, अछूत हो या नीच कुल के हो, क्योंकि तुमने पूर्व जन्म में कर्म खराब किये हैं तो यह उनको गुमराह करना है । कर्म जीवन को सुधारने के किये हैं । कर्म भुलावा देने के लिये नहीं है । यदि पूर्व कर्म से ही सब कुछ होता है और इस जीवन के कर्म का फल अभी नहीं मिलना है तो निष्कर्मण्यता को बढ़ावा मिलता है । फिर तो शांत होकर भोगना ही जीवन का उद्देश्य बनता है । यही कारण है की भारत में इतनी गरीबी
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org