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कर्म और कार्य-कारण सम्बन्ध
0 प्राचार्य रजनीश
साधारणतः कर्मवाद ऐसा कहता हुआ प्रतीत होता है कि जो हमने किया है, उसका फल हमें भोगना पड़ेगा। हमारे कर्म और हमारे भोग में एक अनिवार्य कार्य-कारण सम्बन्ध है। यह बिल्कुल सत्य है कि जो हम करते हैं, उससे अन्यथा हम नहीं भोगते-भोग भी नहीं सकते। कर्म भोग की तैयारी है। असल में, कर्म भोग का प्रारम्भिक बीज है। फिर वही बीज भोग में वृक्ष बन जाता है।
कर्मवाद का जो सिद्धान्त प्रचलित है, उसमें ठीक बात को भी इस ढंग से रखा गया है कि वह बिल्कुल गलत हो गई है। उस सिद्धान्त में ऐसी बात न मालूम किन कारणों से प्रविष्ट हो गई है कि कर्म तो हम अभी करेंगे और भोगेंगे अगले जन्म में । कार्य-कारण के बीच अन्तराल नहीं होता-अन्तराल हो ही नहीं सकता। अगर अन्तराल आ जाय तो कार्य-कारण विच्छिन्न हो जायेंगे, उनका सम्बन्ध टूट जाएगा। आग में मैं अभी हाथ डालू और जलू अगले जन्म में यह समझ के बाहर की बात होगी । लेकिन इस तरह के सिद्धान्त का, इस तरह की भ्रान्ति का कुछ कारण है। वह यह है कि हम एक ओर तो भले
आदमियों को दुःख झेलते देखते हैं, वहीं दूसरी ओर हमें बुरे लोग सुख उठाते दीखते हैं । अगर प्रतिपल हमारे कार्य और कारण परस्पर जुड़ें हैं तो बुरे लोगों का सुखी होना और भले लोगों का दुःखी होना कैसे समझाया जा सकता है ? एक आदमी भला है, सच्चरित्र है, ईमानदार है और दुःख भोग रहा है, कष्ट पा रहा है, दूसरा आदमी बुरा है, बेईमान है, चरित्रहीन है और सुख पा रहा है, वह धन-धान्य से भरा पूरा है । अगर अच्छे कार्य तत्काल फल लाते हैं तो अच्छे आदमी को सुख भोगना चाहिये और यदि बुरे कार्यों का परिणाम तत्काल बुरा होता है तो बुरे आदमी को दुःख भोगना चाहिये । परन्तु ऐसा कम होता है ।
जिन्होंने इसे समझने-समझाने की कोशिश की उन्हें मानो एक ही रास्ता मिला। उन्होंने पूर्व जन्म में किए गए पुण्य-पाप के सहारे इस जीवन के सुखदुःख को जोड़ने की गलती की और कहा कि अगर अच्छा आदमी दुःख भोगता है तो वह अपने पिछले बुरे कार्यों के कारण और अगर कोई बरा आदमी सुख भोगता है तो अपने पिछले अच्छे कर्मों के कारण। लेकिन इस समस्या को सुलझाने के दूसरे उपाय भी थे और असल में दूसरे उपाय ही सच हैं। पिछले
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