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[ कर्म सिद्धान्त
उस ग्रन्थ का एक अंश 'कर्म सिद्धांत सम्बन्धी साहित्य' के नाम से सं० २०२१ में श्री मोहनलालजी जैन ज्ञान भण्डार सूरत से प्रकाशित हुआ था। इस ग्रन्थ में श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्परा के ज्ञात और प्रकाशित कर्म-साहित्य का अच्छा विवरण १८० पृष्ठों में दिया गया है। इनमें से ११६ पृष्ठ तो श्वेताम्बर साहित्य सम्बन्धी विवरण के हैं। उसके बाद के पृष्ठों में दिगम्बर कर्म-साहित्य का विवरण है । विशेष जानकारी प्राप्त करने के लिए यह गुजराती ग्रन्थ पढ़ना चाहिये । यहाँ तो उसी के आधार से मुनि श्री नित्यानन्द विजयजी ने 'कर्म साहित्य नु संक्षिप्त इतिहास' नामक लघु पुस्तिका तैयार की थी, उसी के मुख्य आधार से संक्षिप्त विवरण दिया जा रहा है(१) बंध शतक :
श्री शिवशर्म सूरि रचित इस ग्रन्थ पर ४ भाष्य नामक विवरण हैं, जिनमें वृहद भाष्य १४१३ श्लोक परिमित है । उसके अतिरिक्त चक्रेश्वर सूरि रचित ३ चूर्णी (?), हेमचन्द्र सूरिकृत विनयहितावृत्ति, उदय प्रभ कृत टिप्पण, मुनि चन्द्रसूरिकृत टिप्पण, गुणरत्न सूरिकृत अवचूरी प्राप्त हैं । (२) कर्म प्रकृति (संग्रहणी) :
शिवशर्म सरि रचित इस ग्रन्थ पर एक अज्ञात वार्तिक चूर्णी, मलय गिरि और उपाध्याय यशोविजय कृत टीकाएँ, चर्णी पर मुनि चन्द्रसरि कृत टिप्पण है। पं० चन्दूलाल नानचन्द कृत मलयगिरि टीका सहित मूल का भाषान्तर छप गया है। (३) सप्ततिका (सप्तति) :
___ अज्ञात रचित इस ग्रन्थ पर अन्तर भास, चूणियों, अभय देव कृत भाष्य, मेरु तुग सूरि कृत भाष्य टीका, मलयगिरि कृत विवृति, रामदेव कृत टिप्पण, देवेन्द्र सूरिकृत संस्कृत टीका, गुणरत्न सूरि कृत अवचूर्णी, सोमसुन्दर सूरिकृत चूर्णी, मुनि शेखर (?) कृत ४१५० श्लोक परिमित वृत्ति, कुशल भुवन गरिण तथा देवचन्द्र कृत बालावबोध, धन विजय गणि रचित टब्बा है । फूलचन्द्र शास्त्री कृत हिन्दी गाथार्थ - विशेषार्थ प्रकाशित है। (४) कर्म प्रकृति प्रामृत :
इस ग्रन्थ की साक्षी मुनिचन्द्र ग्रन्थ कृत टिप्पण में चार स्थानों पर मिलती है । पर यह कर्म ग्रन्थ प्राप्त नहीं है । (५) संतकम्भ (सत्कर्मन्ट) :
पंच संग्रह की टीका (मलयगिरि) में दो स्थानों पर इसके अवतरण दिये हैं।
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