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________________ २२२ ] [ कर्म सिद्धान्त ५. क्रिया की युक्तियुक्तता (rationale of Actiom) : इसे उसने क्यों किया ? (अ) कारणता-इसे करने के पीछे क्या कारण था ? (ब) पूर्णता (finality)-किस उद्देश्य (aim) से उसने इसे किया ? (स) अभिप्रायात्मक (intentionality)-किस प्रेरणा से उसने इसे किया ? किसी क्रिया का कर्ता व्यक्ति या समूह (भीड़, संस्था, पालियामेण्ट) जो क्रिया करने के योग्य है, हो सकता है। समूह विभाजित रूप से (distributively) या व्यक्तिगत रूप से अथवा सामूहिक रूप से क्रिया कर सकता है। क्रिया के प्रकार : पूर्णरूपेण जाति प्रकार (fully generic type) की क्रियाएँ जैसे कि खिड़की खोलना, पैंसिल की नोक को तेज करना। लेकिन जब ये क्रियाएँ किसी विशिष्ट विषय को पोर इंगित करती हैं तो विशिष्ट प्रकार (specific type) की कहलाती हैं जैसे कि 'इस खिड़की को खोलना' 'उस पैंसिल की नोक को तेज करना' आदि । जाति के विभिन्न स्तरों में भी किसी विशिष्ट क्रिया का वर्णन किया जा सकता है। उदाहरण के रूप में 'उसने एक हाथ उठाया' अथवा 'उसने अपना दाहिना हाथ उठाया' । जब भी क्रिया प्रकार की बात की जाती है उसमें जिसे व्याकरण में उद्देश्य कहा जाता है, को सम्मिलित किया जाता है। जैसे कि 'राम मोहन को पुस्तक देता है' इस कथन में 'देना' क्रिया प्रकार नहीं है बल्कि 'मोहन को पुस्तक देना' (जो विशिष्ट प्रकार का उदाहरण है) अथवा किसी को पुस्तक देना' (जो जाति प्रकार का उदाहरण है) क्रिया प्रकार है। क्रिया की प्रकारता क्रिया के विशेषणों से ज्ञात होती है (जैसे कि तेजी से हाथ मिलाना, हल्के से हाथ मिलाना) प्रकारता के आधार पर कर्ता की मानसिक स्थिति का पता चलता है। परिस्थिति का पर्यावरण, काल, स्थान एवं परिस्थिति क्रिया के संदर्भ (setting) को निर्धारित करते हैं। कर्ता ने क्रिया क्यों की ?' इस प्रश्न की व्याख्या में कारणता, पूर्णता (finality) एवं प्रेरणा का ध्यान रखा जाता है जैसे कि ऐच्छिक/अनैच्छिक/ जानकर/अनजाने आदि । क्रिया की युक्तिसंगतता के विरोधी युग्म (जैसे कि ऐच्छिक अनैच्छिक) और क्रिया के प्रकार, प्रकारता (modality) एवं परिस्थिति क्रिया प्रत्यय के उभयात्मक स्वरूप पर प्रकाश डालते हैं । 'व्यक्ति' के प्रत्यय, (जिसके Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003842
Book TitleJinvani Special issue on Karmsiddhant Visheshank 1984
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1984
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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