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[ कर्म सिद्धान्त
'तौहीद' कहते हैं और इसी में इस्लाम धर्म का मूलमंत्र ( कलमा) समाहित है - "ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूलल्लाह ।” प्रर्थात् अल्लाह के सिवाय कोई पूज्य नहीं - इबादत के योग्य नहीं, मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं - संदेश - वाहक हैं ।
जब हम सामाजिक कर्मों की ओर ध्यान देते हैं तो निम्न बातें सामने आती हैं । इन्हें भी अल्लाह का आदेश मानना चाहिए
( १ ) माता-पिता के साथ, सद्व्यवहार करो; यदि तुम्हारे पास उनमें से कोई एक या दोनों वृद्ध होकर रहें तो उन्हें उफ़ तक न कहो, न उन्हें झिड़क कर उत्तर दो, वरन् उनसे सादर बातें करो, नम्रता और दया के साथ उनके सामने झुक कर रहो और दुआ करो - परवरदिगार ! उन पर दया कृपा कर, जिस तरह प्र ेम, दया, करुणा के साथ उन्होंने मेरा पालन-पोषण किया है ।
(२) अपने सम्बन्धियों को, याचकों को, अनाथों को, दीन-निर्धन को अपना हक़ - अधिकार दो ।
(३) मितव्ययी बनो, अधिक या फ़ज़ूल व्यय करने वाले शैतान के भाई हैं और शैतान ने अपने परमात्मा का एहसान नहीं माना ।
(४) बलात्कार के पास भी न फटको, यह बहुत ही बुरा कर्म है और बहुत ही बुरा मार्ग है ।
(५) अनाथ के माल - सम्पत्ति के पास मत जाओ, एक उत्तम अच्छा मार्ग अपनाओ जब तक कि वह वयस्कता को प्राप्त न हो ।
(६) प्रण या वचन की पाबन्दी करो, निःसंदेह वचन के बारे में तुम्हें उत्तरदायी होना पड़ेगा ।
(७) पृथ्वी पर अकड़ कर मत चलो, न तुम पृथ्वी को विदीर्ण कर सकते हो, न पर्वतों की उच्चता तक पहुँच सकते हो ।
(८) न तो अपना हाथ गरदन से बांध कर रखो और न उसे बिल्कुल ही खुला छोड़ दो कि भर्त्सना, निन्दा, विवशता का शिकार बनो । तेरा रब जिसके लिए चाहता है, रोजी का विस्तार करता है और जिसके लिए चाहता है। उसे सीमित कर देता है ।
( ६ ) अपनी सन्तान की दरिद्रता के कारण हत्या न करो, अल्लाह सबको अन्न देने वाला है, उनकी हत्या एक बड़ा अपराध है ।
(१०) किसी को नाहक़ क़त्ल मत करो ।
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