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बौद्ध दृष्टिकोण :
बौद्ध दर्शन में कायिक, वाचिक और मानसिक आधार पर निम्न १० प्रकार के पापों या अकुशल कर्मों का वर्णन मिलता है :
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(अ) कायिक पाप
(ब) वाचिक पाप
: १. प्राणातिपात - हिंसा, २. अदन्नादान - चोरी या स्तेय, ३. कामेसु - मिच्छाचार, कामभोग सम्बन्धी दुराचार,
[ कर्म सिद्धान्त
: ४. मृषावाद - श्रसत्य भाषण, ५. पिसुनावाचा - पिशुन वचन, ६. परुसावाचा कठोर वचन, ७. सम्फलाप - व्यर्थ आलाप,
( स ) मानसिक पाप : ८. अभिज्जा-लोभ, ६. व्यापाद - मानसिक हिंसा या अहित चिंतन, १०. मिच्छादिट्ठी - मिथ्या दृष्टिकोण |
अभिधम्म संगाहो में निम्न १४ अकुशल चैतसिक बताए गए हैं : १. मोहचित्त का अन्धापन, मूढ़ता, २. अहिरिक निर्लज्जता, ३. अनोत्तपयं-अ- भीक्ता (पाप कर्म में भय न मानना) २, ४. उद्धच्चं - उद्धतपन, चंचलता, ५. लोभोतृष्णा, ६. दिट्ठि - मिथ्या - दृष्टि, ७. मानो - अहंकार, ८. दोसो -द्वेष, ६. इस्साईर्ष्या (दूसरे की सम्पत्ति को न सह सकना), १०. मच्छरियं - मात्स्पर्य (अपनी सम्पत्ति को छिपाने की प्रवृत्ति), ११. कुक्कुच्च - कौकृत्य ( कृत-अकृत के बारे में पश्चात्ताप ), १२. थीनं, १३. मिद्ध, १४. विचिकिच्छा - विचिकित्सा (संशयालुपल) ।
गोताका दृष्टिकोण:
गीता में भी जैन और बौद्ध दर्शन में स्वीकृत इन पापाचरणों या विकर्मों का उल्लेख सम्पदा के रूप में किया गया है । 'गीता रहस्य' में तिलक ने मनु स्मृति के आधार पर निम्न दस प्रकार के पापाचरण का वर्णन किया है ।
(अ) कायिक : १. हिंस, २. चोरी, ३. व्यभिचार । (ब) वाचिक
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: ४. मिथ्या (असत्य), ५. ताना मारना, ६. कटुवचन, ७. असंगत बोलना ।
( स ) मानसिक : ८. परद्रव्य अभिलाषा, ६. अहित चिन्तन, १०. व्यर्थ आग्रह ।
१ - बौद्ध भा० व०, पृष्ठ ४८० |
२ - अभिधम्मत्य संगहो, पृष्ठ १६ - २० ।
३ - मनुस्मृति १२ / ५-७ ।
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