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________________ अन्तर्मन की ग्रंथियाँ खोलें ] [ १२६ निष्फल भी । इसे ही मूल की भूल कहते हैं क्योंकि मूल पर पकड़ न रहने से आगे की गति में भूलें ही भूलें होती रहती हैं तथा धीरे-धीरे आत्म विस्मृति के कारण उन्हें परख लेने की क्षमता भी क्षीण होती चली जाती है । इसलिये प्रारम्भ से ही मूल की भूलों को नहीं पकड़ेंगे और उन्हें नहीं सुधारेंगे तो सिर्फ टहनियों और पत्तों को संवारने से पेड़ को हरा-भरा नहीं रख पायेंगे | इस मूल की भूल को ठीक से समझ लेने की आवश्यकता है । वस्तुतः आज लक्ष्य की ही भ्रान्ति है । आज अधिकांश लोगों ने जो मुख्य लक्ष्य बना रखा है वह शायद यह है कि अधिकाधिक सत्ता और सम्पत्ति पर हमारा ही श्राधिपत्य स्थापित हो । ममताभरी ऐसी लालसा उनके मन में तेजी से उमड़ती - घुमड़ती है । सत्ता र सम्पत्ति - ये बाहरी तत्त्व हैं जो आन्तरिक शक्ति को उजागर बनाने में बाधा रूप ही हैं । जब चेतना बाधाओं को झोली में समेटती जाय तो यह मूल की भूल हुई कि नहीं ? बाधाओं को हटाने के लिये गति दी जाती है, उन्हें समेटने के लिए नहीं । उससे तो दुर्गति होती है । अगर मूल की भूल पकड़लें कि ममता-मन को बिगाड़ती है और समता सुधारती है तो ममता के तानोबानों में नहीं उलझेंगे । प्रात्माभिमुखी बनकर ही मनुष्य अपने बाहरी जगत् के कर्त्तव्यों का भी सही निर्धारण कर सकता है क्योंकि उस निर्धारण में संसार के सभी प्राणियों के प्रति समता-भाव का अस्तित्व होता है । मूल में समता रहेगी तो मूल को देखकर बाद की किसी भूल को सुधारना सरल हो जायगा । शक्ति के नियंत्रण से ही उसका सदुपयोग : चैतन्य प्राणियों में शक्ति का प्रवाह तो निरन्तर बह रहा है जिसमें दोनों प्रकार की शक्तियाँ - भौतिक एवं प्राध्यात्मिक सम्मिलित हैं । दोनों प्रकार की इन प्रवहमान शक्तियों को बांधकर जीवन विकास की दिशा में उनका पूरा सदुपयोग किया जा सकता है । वर्षा का खुला पानी चारों ओर बिखर कर बरबाद हो जाता है मगर यदि उसी पानी को - नदियों या नालों को रोक कर बांध लें और बांध बनालें तो उस बंधे हुए पानी का कई रीतियों से मानव समाज अपने लिए सदुपयोग कर सकता है । शक्ति बिखर जाती है तो टूट जाती है और शक्ति बंध जाती है तो सुख का साधन हो जाती है । 1 यहाँ प्रश्न शक्ति के नियंत्रण एवं उसके सदुपयोग का ही है ताकि वह शक्ति सच्चा विकास सम्पादित करा सके । चेतना - शक्ति के लिये भी यही प्रश्न है । पर-तत्त्वों के पीछे भागते रहने से तथा विषमताओं में ग्रस्त हो जाने से • चेतना शक्ति लु जपुज हो रही है और बिखर रही है - इस कारण प्रभावहीन हो रही है - निरुपयोगी बन रही है । मूल की भूल को पकड़ कर यदि चेतना शक्ति Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003842
Book TitleJinvani Special issue on Karmsiddhant Visheshank 1984
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1984
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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