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________________ [ कर्म सिद्धान्त से संकलित किये गये हैं। इस खण्ड के निबन्धों में जो विचार व्यक्त किये गये हैं वे आज के युग की समस्याओं व विचारधाराओं के परिप्रेक्ष्य में हैं अतः इनका स्वर समीक्षात्मक है। इनके अध्ययन से कर्म-विचार की विविध भंगिमामों, उनकी शक्तियों और सीमाओं से परिचित होने में मदद मिलती है। विचार-मन्थन की दृष्टि से इन निबन्धों का विशेष महत्त्व और उपयोग है। ये विचार लेखकों के अपने हैं और उनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है। तृतीय खण्ड में 'कर्म सिद्धान्त और आधुनिक विज्ञान' से सम्बन्धित चार निबन्ध हैं। इनके अध्ययन से कर्म सिद्धान्त की वैज्ञानिकता को समझने में सहायता मिलती है। चतुर्थ खण्ड 'कर्म और पुरुषार्थ की जैन कथाएँ' से सम्बन्धित है। इसमें जैन कथा साहित्य का संक्षिप्त परिचय देते हुए तत्सम्बन्धी ५ कथाएँ दी गई हैं । कर्म सिद्धान्त को समझने में ये कथाएँ विशेष उपयोगी हैं। परिशिष्ट में सहयोगी लेखकों का संक्षिप्त परिचय दिया गया है । इस विशेषांक के प्रकाशन की योजना आज से लगभग चार वर्ष पूर्व बनी थी। हमारा विचार कर्म सिद्धान्त और आधुनिक विज्ञान से सम्बद्ध विशेष सामग्री इसमें प्रकाशित करने का था पर वह संभव न हो सका। जैन धर्म, दर्शन के प्रसिद्ध विद्वान् श्री कन्हैयालाल लोढ़ा का सामग्री-संकलन में विशेष सहयोग मिला है, अतः हम उनके प्रति हार्दिक आभार प्रकट करते हैं। जिन विद्वान् आचार्यों, मुनियों व लेखकों ने अपनी रचनाएँ भेजकर इस विशेषांक को इस रूप में प्रस्तुत करने में हमारी सहायता की, उनके प्रति हम हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं। जिन व्यक्तियों, संस्थाओं व व्यापारिक प्रतिष्ठानों ने अपने विज्ञापन देकर हमें आर्थिक सहयोग प्रदान किया, वे सब धन्यवाद के पात्र हैं । विज्ञापन खण्ड के संयोजक श्री सुमेरसिंह बोथरा और उनके सहयोगी सर्वश्री पूरणराज अब्बाणी जोधपुर, पारसराज बाँठिया अहमदाबाद, धर्मेन्द्र हीरावत बम्बई, मोतीचन्द कर्णावट जयपुर एवं पार्श्वकुमार मेहता जयपुर का विज्ञापन एकत्र करने में विशेष सहयोग रहा है अतः हम उनके आभारी हैं। आशा है, इस विशेषांक के अध्ययन-मनन से आत्म-पुरुषार्थ को जागृत करने एवं लोकसेवा के मार्ग पर अग्रसर होने की प्रेरणा मिलेगी। सी-२३५ ए, दयानंद मार्ग, तिलकनगर, -डॉ० नरेन्द्र भानावत . : जयपुर-४ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003842
Book TitleJinvani Special issue on Karmsiddhant Visheshank 1984
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1984
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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