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________________ १०६ शकुनविद्यानुं स्वरूप. ४२३-हे पूछनार ! तारो विजय अशे, शत्रुनो क्ष्य अशे, धन संपत्तिनो लाल श्रशे, सजनोनी साथे प्रीति थशे, कुशळ देम श्रशे तथा उसम करवा विगेरेथी लाल थशे, हवे तारां पापनो नाश थयो , तेथी जे कामनो तुं विचार करे ने ते सर्व सिह थशे. श्रा वातनोए पूरावो के तुं स्वप्नमां वृदने जोश्श. ४२४-हे पूछनार ! तारा मनमा घणी नारे चिंता ने, तने अर्थनो लाल अशे, तारी जीत थशे, सऊननी मुलाकात थशे, सर्वे काम सफळ थशे तथा चित्तमां आनंद श्रशे. ४३१-हे पूछनार ! आ शकुन दीर्घायु करवावाळु , तने बीजा ठेकाणानी चिंता , तुं नाबंधना आगमनने चाहे , तुं तारा मनमां जे कामनो विचार करे ने ते सर्व सिख श्रशे, हवे तारां पुःखनो नाश थर गयो बे, परंतु तने देशांतरमां जवाथी धननो लान थशे अने कुशळ देम आवीश. या वातनो ए पूरावो दे के तुं स्वप्नमां पहाग पर चढवु तथा मकान विगेरे देखीश अथवा तारा पग उपर पचफामोर्नु चिह्न बे.. ___४३३-हे पूछनार ! हवे तारां सघळां दुःख खलास थयां तथा तने कल्याण प्राप्त श्रयेल , तने ठेकाणानी चिंता ने तथा तुं कोश्नी मुलाकातने चाहे नेते तथा जे कांइ काम तें विचारी राखेल मे ते सर्व श्रशे, देशांतरमांजवाथी धननी प्राप्ति थशे तथा त्यांथी कुशळ हेम तुं आवीश.. ४३३-हे पूजनार ! ज्यारे तारी पासे अगाउ धन इतुं त्यारे तो मित्र, पुत्र अने लाइ आदि सर्वे लोक तारो दुकम मानता हता, परंतु खोटां कर्मना प्रत्नावथी हवे ते सर्व धन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003841
Book TitleShakun Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1919
Total Pages120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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