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________________ शकुन विद्यानुं स्वरूप. १०५ ४१३-हे पूछनार ! तारा मनमां धनलालनी चिंता ने अने तुं को व्हाला मित्रनी मुलाकातनी श्छा राखे ने तो तारी जीत थशे, अचळ ठेकाणुं मळशे, पुत्रनो लाल थशे, परदेश जवाथी कुशळ देम रहेशे तथा थोमा दिवसो पनी तारी घणीज वृद्धि थशे. आ वातनी सत्यतार्नु ए प्रमाण बे के तुं स्वममां दर्पण देखीश. ४१५-हे पूनार ! आ बहु सारं शकुन , तने विपद अर्थात् कोइ आदमीनी चिंता ने ते एक महीनामां मटी जशे, धननो लाल थशे, मित्रनी साथे मुलाकात थशे तथा मनमा विचारी राखेख सर्व काम जल्दी सिद्ध थशे. ४१-हे पूछनार ! तुंधनने चाहे जे, संसारमां तारी प्रतिष्ठा थशे, परदेशमां जवाथी मनोवांछित लान थशे तथा सजननी मुलाकात अशे, ते स्वप्नमां धन जोडे अथवा स्त्रीनी वात करी बे. श्रा अनुमानथी सर्व कांश सारं थशे, तुं माताने शरणे जा. एम करवाथी कोइ पण विघ्न नहीं श्रावे. ४२२-हे पूबनार ! तारा मनमा उकुराश्नी चिंता , परंतु तारी पारळ तो दरिता पमी रही , तुं बीजाना काममा लागी रह्यो , मनमां मोटी तकलीफ श्रश्रही तथा त्रण वर्ष थयां तने क्लेश थइ रह्यो बे अर्थात् सुख नथी, तेथी तारा मन- विचारी राखेख काम गेमी दश्ने बीजुं काम कर, तेसफळ थशे, तुं कवण स्वप्नने जुए बे तथा तेनुं ज्ञान तने श्रतुं नथी, तेथी जे तारो कुळधर्म ने ते कर, गुरुनी सेवा कर तथा कुळदेवनुं ध्यान कर. एम करवाथी सिद्धि थशे.. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003841
Book TitleShakun Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1919
Total Pages120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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