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शकुन विद्यानुं स्वरूप.
एए २२४-हे पूनार ! तारा मनमां परस्त्रीनी चिंता , तुं घणा दिवसथी तकलीफने देखी रह्यो , तुं अहीं तहीं लटकी रह्यो ने तथा तारी सांथे अहीं लगाइ विगेरे घणा दिवस श्रयां चाली रहेल ने ते सर्व विरोध शांत अश् जशे, हवे तारी तकलीफ गइ, कल्याण श्रशे तथा पाप अने मुःख बधां नाश पाम्यां, तुं गुरुदेवनी नक्ति कर तथा कुळदेवनी पूजा कर. एम करवायी तारा मननां विचारी राखेल सर्वे काम ठीक थश्जशे.
२३१-हे पूछनार ! तुंने दोषोनो विचार कर्या विना धननो लाल अशे, एक महीनामां तारो विचारी राखेल मनोरथ सिद्ध थशे अने तने मोटुं फळ मळशे. आ वातनी सत्यतार्नु ए प्रमाण बे के तें स्त्रीनी कथा करी अथवा तुं स्वप्नमां वृदने, शून्य घरोने अथवा शून्य देशने अथवा सूका तळावने जोश.
२३२-हे पूनार ! तें बहु कठण कामनो विचार कर्यो बे, तने फायदो थशे नहीं, तारुं काम सिद्ध थशे नहीं तथा तने सुख मळवू कवण . आ वातनी सत्यतानुं ए प्रमाण ने के तुं स्वप्नमां नेसने देखीश.
२३३-हे पूछनार ! तारा मनमां एकाएक काम उत्पन्न श्रश् गयुं , तुं बीजाना कामने माटे चिंता करे , तारा मनमां विलक्षण तथा कवण चिंता, तें अनर्थ करवो धार्यों ने, तेथी कार्यनी चिंताने गेमीने तुं बीजुं काम कर तथागोत्रदेवींनी आराधना कर, तेथी तारं नर्बु श्रशे. श्रा वातनी सत्य-तानुं प्रमाण ए के तारा घरमां कलह , अथवा तुं बहार फरे ने एवं जोश अथवा स्वप्नमां तने देवताउनुं दर्शन अशे.
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