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________________ प्रस्तावना गद्यकथाकोश-यह ग्रन्थ भी इन्हीं प्रभाचन्द्रका मालूम होता है । इसकी प्रतिमें ८९ वीं कथाके बाद "श्रीजयसिंहदेवराज्ये" प्रशस्ति है । इसके प्रशस्ति श्लोकोंका प्रभाचन्द्रकृत न्यायकुमुदचन्द्र आदिके प्रशस्तिश्लोकोंसे पूरा पूरा सादृश्य है। इसका मंगलश्लोक यह है- "प्रणम्य मोक्षप्रदमस्तदोषं प्रकृष्टपुण्यप्रभवं जिनेन्द्रम् । । वक्ष्येऽत्र भव्यप्रतिबोधनार्थमाराधनासत्सुकथाप्रबन्धः ॥" । ८९ वी कथाके अनतर "जयसिंहदेवराज्ये" प्रशस्ति लिखकर प्रन्थ समाप्त कर दिया गया है। इसके अनन्तर भी कुछ कथाएँ लिखीं हैं । और अन्तमें "सुकोमलैः सर्वसुखावबोधैः" श्लोक तथा "इति भट्टारकप्रभाचन्द्रकृतः कथाकोशः समाप्तः" यह पुष्पिकालेख है । इस तरह इसमें दो स्थलों पर ग्रन्थसमाप्तिकी सूचना है जो खासतौरसे विचारणीय है। हो सकता है कि प्रभाचन्द्रने प्रारम्भकी ८९ कथाएँ ही बनाई हों और बादकी कथाएँ किसी दूसरे भट्टारकप्रभाचन्द्रने। अथवा लेखकने भूलसे ८९ वीं कथाके बाद ही ग्रन्थसमाप्तिसूचक पुष्पिकालेख लिख दिया हो। इसको खासतौरसे जाँचे बिना अभी विशेष कुछ कहना शक्य नहीं है। : मेरे विचारसे प्रभाचन्द्रने तत्त्वार्थवृत्तिपदविवरण और प्रवचनसारसरोजभास्कर भोजदेवके राज्यसे पहिले अपनी प्रारम्भिक अवस्थामें बनाए होंगे यही कारण है कि उनमें 'भोजदेवराज्ये' या 'जयसिंहदेवराज्ये कोई प्रशस्ति नहीं पाई जाती और न उन ग्रन्थों में प्रमेयकमलमार्तण्ड आदिका उल्लेख ही पाया जाता है। इस तरह हम प्रभाचन्द्रकी ग्रन्थरचनाका क्रम इस प्रकार समझते हैं-तत्त्वार्थवृत्तिपदविवरण, प्रवचनसारसरोजभास्कर, प्रमेयकमलमात्तेण्ड, न्यायकुमुदचन्द्र, शब्दा १ न्यायकुमुदचन्द्र प्रथमभागकी प्रस्तावना पृ० १२२ "थैराराध्य चतुर्विधामनुपमामाराधनां निर्मलाम् । प्राप्तं सर्वसुखास्पदं निरुपमं स्वर्गापवर्गप्रदा (?)। तेषां धर्मकथाप्रपञ्चरचनास्वाराधना संस्थिता । स्थयात् कर्मविशुद्धिहेतुरमला चन्द्रार्कतारावधि ॥ १ ॥ सुकोमलैः सर्वसुखावबोधैः पदैः प्रभाचन्द्रकृतः प्रबन्धः । कल्याणकालेऽथ जिनेश्वराणां सुरेन्द्रदन्तीव विराजतेऽसौ ॥ २ ॥ श्रीजयसिंहदेवराज्ये श्रीमद्धारानिवासिना परापरपञ्चपरमेष्ठिप्रणामोपार्जितामलपुण्यनिराकृतनिखिलमलकलङ्केन श्रीमत्प्रभाचन्द्रपण्डितेन आराधनासत्कथाप्रबन्धः कृतः।" २ योगसूत्रपर भोजदेवकी राजमार्तण्ड नामक टीका पाई जाती है । संभव है प्रमेयकमलमार्तण्ड और राजमार्तण्ड नाम परस्पर प्रभावित हों। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003838
Book TitlePramey Kamal Marttand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrakumar Shastri
PublisherSatya Bhamabai Pandurang
Publication Year1941
Total Pages920
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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