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________________ प्रमेयकमलमार्तण्ड है। यहाँ उनके शब्दाम्भोजभास्कर (जैनेन्द्रव्याकरण महान्यास); प्रवचनसारसरोजभास्कर (प्रवचनसारटीका) और गद्यकथाकोश का परिचय दिया जाता है। महापुराणटिप्पण आदि भी इन्हींके ग्रन्थ हैं । इस परिचयके पहिले हम 'शाकटायनन्यास' के कर्तृल पर विचार करते है भाई पं० कैलाशचन्द्रजी शास्त्रीने शिलालेख तथा किंवदन्तियोंके आधारसे शाकटायनन्यासको प्रभाचन्द्रकृत लिखा है* । शिमोगा जिलेके नगरताल्लुकेके शिलालेख नं० ४६ (एपि० कर्ना० पु. ८ भा० २ पृ. २६६-२७३) में प्रभाचन्द्रकी प्रशंसापरक ये दो श्लोक हैं "माणिक्यनन्दिजिनराजवाणीप्राणाधिनाथः परवादिमर्दी । चित्रं प्रभाचन्द्र इह क्षमायां मार्तण्डवृद्धौ नितरां व्यदीपित ॥ सुखि..न्यायकुमुदचन्द्रोदयकृते नमः । शाकटायनकृत्सूत्रन्यासकर्ते व्रतीन्दवे ॥" जैनसिद्धान्तभवन आरामें वर्धमानमुनिकृत दशभक्त्यादिमहाशास्त्र है । उसमें भी ये श्लोक हैं। उनमें 'सुखि...' की जगह 'सुखीशे' तथा 'व्रतीन्दवे' के स्थानमें 'प्रमैन्दवे' पाठ है । यह शिलालेख १६ वीं शताब्दीका है और वर्धमानमुनिका समय भी १६ वीं शताब्दी ही है। शाकटायनन्यासके प्रथम दो अध्यायोंकी प्रतिलिपि स्याद्वादविद्यालयके सरस्वतीभवनमें मौजूद है। उसको सरसरी तौर से पलटने पर मुझे इसके प्रभाचन्द्रकृत होने में निम्नलिखित कारणों से सन्देह उत्पन्न हुआ है * न्यायकुमुदचन्द्र प्रथमभागकी प्रस्तावना पृ० १२५ । । इस शिलालेखके अनुवादमें राइस सा० ने आ० पूज्यपादको ही न्यायकुमुदचन्द्रोदय और शाकटायनन्यासका कर्ता लिख दिया है। यह गलती आपसे इसलिये हुई कि इस श्लोकके बाद ही पूज्यपादकी प्रशंसा करनेवाला एक श्लोक है, उसका अन्वय आपने भूलसे "सुखि” इत्यादि श्लोकके साथ कर दिया है । वह श्लोक यह है "न्यासं जैनेन्द्रसंज्ञं सकलबुधनुतं पाणिनीयस्य भूयो न्यासं शब्दावतारं मनुजततिहितं वैद्यशास्त्रं च कृत्वा । यस्तत्त्वार्थस्य टीकां व्यरचयदिह तां भात्यसौ पूज्यपाद स्वामी भूपालवन्द्यः स्वपरहितवचः पूर्णदृग्बोधवृत्तः ॥" थोड़ी सी सावधानीसे विचार करने पर यह स्पष्ट मालूम होता जाता है कि 'सुखि' इत्यादि श्लोकके चतुर्थ्यन्त पदोंका 'न्यास' वाले लोकसे कोई भी सम्बन्ध नहीं है । न. शीतलप्रसादजीने 'मद्रास और मैसूरप्रान्तके स्मारक' में तथा प्रो० हीरालालजीने 'जैनशिलालेख संग्रह' की भूमिका (पृ० १४१) में भी राइस सा० का अनुसरण करके इसी गलतीको 'दुहराया है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003838
Book TitlePramey Kamal Marttand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrakumar Shastri
PublisherSatya Bhamabai Pandurang
Publication Year1941
Total Pages920
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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