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________________ ૬૨ ई० ९०० के लगभग मानते हैं । अतः प्रभाचन्द्रका समय भी ई० ९०० के बाद ही होना चाहिए । प्रस्तावना ५- आ० देवसेनने अपने दर्शनसार ग्रंथ ( रचनासमय ९९० वि० ९३३ ई.) के बाद भावसंग्रह ग्रंथ बनाया है । इसकी रचना संभवतः सन् ९४० के आसपास हुई होगी । इसकी एक 'नोकम्मकम्महारो' गाथा प्रमेयकमलमाड तथा न्यायकुमुदचन्द्रसें उद्धृत है । यदि यह गाथा स्वयं देवसेनकी है तो प्रभाचन्द्रका समय सन् ९४० के बाद होना चाहिए । ६ - आ० प्रभाचन्द्रने प्रमेयकमल और न्यायकुमुद० बनानेके बाद शब्दाभोजभास्कर नामका जैनेन्द्रन्यास रचा था । यह न्यास जैनेन्द्रमहावृत्तिके बाद इसके आधार से बनाया गया है । मैं 'अभयनन्दि और प्रभाचन्द्र' की तुलना ( पृ० ३९ ) करते हुए लिख आया हूँ कि नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्तीके गुरु अभयनन्दिने ही यदि महावृत्ति बनाई है तो इसका रचनाकाल अनुमानतः ९६० ई० होना चाहिए। अतः प्रभाचन्द्रका समय ई० ९६० से पहिले नहीं माना जा सकता । ७- पुष्पदन्तकृत अपभ्रंशभाषा के महापुराण पर प्रभाचन्द्रने एक टिप्पण रचा है । इसकी प्रशस्ति रत्नकरण्ड श्रावकाचार की प्रस्तावना ( पृ० ६१ ) में दी गई है | यह टिप्पण जयसिंहदेव के राज्यकालमें लिखा गया है । पुष्पदन्तने अपना महापुराण सन् ९६५ ई० में समाप्त किया था । टिप्पणकी प्रशस्तिसे तो यही मालूम होता है कि प्रसिद्ध प्रभाचन्द्र ही इस टिप्पणकर्ता हैं । यदि यही प्रभाचन्द्र इसके रचयिता हैं, तो कहना होगा कि प्रभाचन्द्रका समय ई० ९६५ के बाद ही होना चाहिए । यह टिप्पण इन्होंने न्यायकुमुदचन्द्रकी रचना करके लिखा होगा । यदि यह टिप्पण प्रसिद्ध तर्कग्रन्थकार प्रभाचन्द्रका न माना जाय तब भी इसकी प्रशस्तिके श्लोक और पुष्पिकालेख, जिनमें प्रमेयकमलमार्तण्ड और न्यायकुमुदचन्द्रके प्रशस्तिश्लोकोंका एवं पुष्पिकालेखका पूरा पूरा अनुकरण किया गया है, प्रभाचन्द्रकी उत्तरावधि जयसिंहके राज्य कालतक निश्चित करने में साधक तो हो ही सकते हैं । ८- श्रीधर और प्रभाचन्द्रकी तुलना करते समय हम बता आए हैं कि प्रभाचन्द्रके ग्रन्थों पर श्रीधरकी कन्दली भी अपनी आभा दे रही है । श्रीधरने कन्दली टीका ई० सन् ९९१ में समाप्त की थी । अतः प्रभाचन्द्रकी पूर्वावधि . ई० ९९० के करीब मानना और उनका कार्यकाल ई० १०२० के लगभग मांनना संगत मालूम होता है । - ९ - श्रवणबेलगोलाके लेख नं० ४० (६४) में एक पद्मनन्दिसैद्धान्तिकका उल्लेख है और इन्हींके शिष्य कुलभूषण के सधर्मा प्रभाचन्द्रको शब्दाम्भोरुहreat और प्रथिततर्कग्रन्थकार लिखा है १ देखो महापुराणकी प्रस्तावना | Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003838
Book TitlePramey Kamal Marttand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrakumar Shastri
PublisherSatya Bhamabai Pandurang
Publication Year1941
Total Pages920
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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