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________________ ४२ . प्रमेयकमलमार्तण्ड (ई० ९३३) में अपना दर्शनसार ग्रन्थ बनाया था। दर्शनसारके बाद इन्होंने भावसंग्रह ग्रन्थकी रचना की थी; क्योंकि उसमें दर्शनसारकी अनेकों गाथाएँ उद्धृत मिलती हैं। इनके आराधनासार, तत्त्वसार, नयचक्रसंग्रह तथा आलापपद्धति ग्रन्थ भी हैं । आ० प्रभाचन्द्रने प्रमेयकमलमार्तण्ड (पृ. ३०.) तथा न्यायकुमुदचन्द्र (पृ० ८५६) के कवलाहारवादमें देवसेनके भावसंग्रहः (गा० ११०) की यह गाथा उद्धृत की है "णोकम्मकम्महारो कवलाहारो य लेप्पमाहारो। . ओज मणोवि य कमसो आहारो छव्विहो यो ॥" यद्यपि देवसेनसूरिने दर्शनसार ग्रन्थके अन्तमें लिखा है कि "पुव्वायरियकयाई गाहाई संचिऊण एयत्थ । सिरिदेवसेणगणिणा धाराए संवसंतेण ॥ रइयो दंसणसारो हारो भव्वाण णवसए णवए । सिरिपासणाहगेहे सुविसुद्धं माहसुद्धदसमीए ॥" अर्थात् पूर्वाचार्यकृत गाथाओंका संचय करके यह दर्शनसार ग्रन्थ बनाया गया है। तथापि बहुत खोज करने पर भी यह गाथा किसी प्राचीन ग्रंथमें नहीं मिल सकी है। देवसेन धारानगरीमें ही रहते थे, अतः धारानिवासी प्रभाचन्द्रके द्वारा भावसंग्रहसे भी उक्त गाथाका उद्धृत किया जाना असंभव नहीं है। चूंकि दर्शनसारके बाद भावसंग्रह बनाया गया है, अतः इसका रचनाकाल संभवतः . विक्रम संवत् ९९७ (ई० ९४०) के आसपास ही होगा। श्रुतकीर्ति और प्रभाचन्द्र-जैनेन्द्रके प्राचीन सूत्रपाठपर आचार्य श्रुतकीर्तिकृत पंचवस्तुप्रक्रिया उपलब्ध है । श्रुतकीर्तिने अपनी प्रक्रियाके अन्तमें श्रीमदृत्तिशब्दसे अभयनन्दिकृत महावृत्ति और न्यासशब्दसे संभवतः प्रभाचन्द्रकृत न्यास, दोनोंका ही उल्लेख किया है। यदि न्यासशब्द पूज्यपादके जैनेन्द्रन्यासका निर्देशक हो तो 'टीकामाल' शब्दसे तो प्रभाचन्द्रकी टीकाका उल्लेख किया ही गया है। यथा "सूत्रस्तम्भसमुद्धृतं प्रविलसन्न्यासोरुरत्नक्षिति, श्रीमद्वृत्तिकपाटसंपुटयुतं भाष्यौघशय्यातलम् । टीकामालमिहारुरुक्षुरचितं जैनेन्द्रशब्दागमम् , प्रासादं पृथुपञ्चवस्तुकमिदं सोपानमारोहतात् ॥" कनडी भाषाके चन्द्रप्रभचरित्रके कर्ता अग्गलकविने श्रुतकीर्तिको अपना गुरु बताया है- . "इति परमपुरुनाथकुलभूभृत्समुद्भूतप्रवचनसरित्सरिन्नाथश्रुतकीर्तित्रैविधचक्रव १ देखो प्रेमीजीका 'जैनेन्द्र व्याकरण और आचार्यदेवनन्दी' लेख जैनसा० सं० भाग १ अंक २। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003838
Book TitlePramey Kamal Marttand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrakumar Shastri
PublisherSatya Bhamabai Pandurang
Publication Year1941
Total Pages920
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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