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________________ ३० प्रमेयकमलमार्तण्ड गाथा, तथा प्रा० सिद्धभक्तिकी 'पुंवेदं वेदन्ता' गाथा उद्धृत की है । प्राकृत दशभक्तियाँ भी कुन्दकुन्दाचार्यके नामसे प्रसिद्ध हैं। समन्तभद्र और प्रभाचन्द्र-आद्यस्तुतिकार खामि समन्तभद्राचार्यके बृहत्स्वयम्भूस्तोत्र, आप्तमीमांसा, युक्त्यनुशासन आदि ग्रन्थ प्रसिद्ध हैं । इनका समय विक्रमकी दूसरी शताब्दी माना जाता है। किन्हीं विद्वानोंका विचार है कि इनका समय विक्रमकी पांचवीं या छठवीं शताब्दी होना चाहिए। प्रभाचन्द्रने न्यायकुमुदचन्द्रमें बृहत्वयम्भूस्तोत्रसे "अनेकान्तोऽप्यनेकान्तः""मानुषी प्रकृतिमभ्यतीतवान्" "तदेव च स्यान्न तदेव" इत्यादि श्लोक उद्धृत किए हैं। आ० विद्यानन्दने आप्तपरीक्षाका उपसंहार करते हुए यह श्लोक लिखा है कि "श्रीमत्तत्त्वार्थशास्त्राद्भुतसलिलनिधेरिद्धरत्नोद्भवस्य प्रोत्थानारम्भकाले सकलमलभिदे शास्त्रकारैः कृतं यत् । स्तोत्रं तीर्थोपमानं प्रथितपृथुपथं खामिमीमांसितं तत् .. विद्यानन्दैः खशक्त्या कथमपि कथितं सत्यवाक्यार्थसिध्यै ॥ १२३ ॥" अर्थात् तत्त्वार्थशास्त्ररूपी अद्भुत समुद्रसे दीप्तरत्नोके उद्भवके प्रोत्थानारम्भकाल-प्रारम्भिक समयमें, शास्त्रकारने, पापोंका नाश करनेके लिए, मोक्षके पथको बतानेवाला, तीर्थस्वरूप जो स्तवन किया था और जिस स्तवनकी खामीने मीमांसा की है, उसीका विद्यानन्दने अपनी स्वल्पशक्तिके अनसार सत्यवाक्य और सत्यार्थकी सिद्धिके लिए विवेचन किया है । अथवा, जे. दीप्तरत्नों के उद्भव-उत्पत्ति का स्थान है उस अद्भुत सलिलनिधि के समान तत्त्वार्थशास्त्र के प्रोत्थानारम्भकाल-उत्पत्तिका निमित्त बताते समय या प्रोत्थान-उत्थानिका भूमिका बांधने के प्रारम्भिक समय में शास्त्रकारने जो मंगलस्तोत्र रचा और जिस स्तोत्र में वर्णित आप्तकी खामीने मीमांसा की उसीकी. मैं (विद्यानन्द) परीक्षा कर रहा हूं। - वे इस श्लोकमें स्पष्ट सूचित करते हैं कि स्वामी समन्तभद्रने 'मोक्षमार्गस्य नेतारम्' मंगलश्लोकमें वर्णित जिस आप्तकी मीमांसा की है उसी आप्तकी मैंने परीक्षा की है। वह मंगलस्तोत्र तत्त्वार्थशास्त्ररूपी समुद्रसे दीप्त रत्नोंके उद्भवके प्रारम्भिक समयमें या तत्त्वार्थशास्त्र की उत्पत्तिका निमित्त बताते समय शास्त्रकारने बनाया था। यह तत्त्वार्थशास्त्र यदि तत्त्वार्थसूत्र है तो उसका मथन करके रत्नोंके निकालनेवाले या उसकी उत्थानिका बांधनेवाले-उसकी उत्पत्ति का निमित्त बतानेवाले आचार्य पूज्यपाद हैं । यह 'मोक्षमार्गस्य नेता' श्लोक खयं सूत्रकारका तो नहीं मालूम होता; क्योंकि पूज्यपाद, भट्टाकलङ्कदेव और-विद्यानन्दने सवर्वार्थसिद्धि, राजवार्तिक और श्लोकवार्तिकमें इसका व्याख्यान नहीं किया है। यदि विद्यानन्द इसे सूत्रकारकृत ही मानते होते तो वे अवश्य Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003838
Book TitlePramey Kamal Marttand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrakumar Shastri
PublisherSatya Bhamabai Pandurang
Publication Year1941
Total Pages920
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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