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प्रमेयकमलमार्तण्ड
सांख्येऽनल्पमतिः खयं स कपिलो लोकायते सद्गुरुः । बुद्धो बुद्धमते जिनोक्तिषु जिनः को वाथ नायं कृती ॥ यद्भूतं यदनागतं यदधुना किंचित्कचिद्वर्ध (त) ते।
सम्यग्दर्शनसम्पदा त पश्यन् प्रमेयं महत् ॥ . सर्वज्ञः स्फुटमेष कोपि भगवानन्यः क्षितौ सं(शं)करः ।
धत्ते किन्तु न शान्तधीविषमप्रौद्रं वपुः केवलम् ॥" । . इन श्लोकोंमें बतलाया है कि 'व्योमशिवाचार्य शैवसिद्धान्तमें खयं शिव, न्यायमें अक्षपाद, वैशेषिक शास्त्रमें कणाद, मीमांसामें जैमिनि, सांख्यमें कपिल, चार्वाकशास्त्र में बृहस्पति,बुद्धमतमें बुद्ध तथा जिनमतमें स्वयं जिनदेवके समान थे। अधिक क्या; अतीतानागतवर्तमानवर्ती यावत् प्रमेयोंको अपनी सम्यग्दर्शनसम्पत्तिसे स्पष्ट देखने जानने वाले सर्वज्ञ थे । और ऐसा मालूम होता था कि मात्र विषमनेत्र ( तृतीयनेत्र ) तथा रौद्रशरीर को धारण किए बिना वे पृथ्वी पर दूसरे शंकर भगवान् ही अवतरे थे। इनके गगनेश, व्योमशम्भु, व्योमेश, गगनशशिमौलि आदि भी नाम थे। 'शिलालेखके आधारसे समय-व्योमशिवके पूर्ववर्ती चतुर्थगुरु पुरन्दरको अवन्तिवर्मा राजा अपने नगरमें ले गया था। अवन्तिवर्मा के चाँदीके सिक्कों पर "विजितावनिरवनिपतिः श्री अवन्तिवर्मा दिवं जयति" लिखा रहता है तथा संवत् २५० पढ़ा गया है * । यह संवत् संभवतः गुप्त संवत् है । डॉ. फ्लीटके मतानुसार गुप्त संवत् ई - सन् ३२० की २६ फरवरी को प्रारम्भ होता है । अतः ५७० ई० में अवन्तिवर्माका अपनी मुद्राको प्रचलित करना इतिहाससिद्ध है। इस समय अवन्तिवर्मा राज्य कर रहे होंगे। तथा ५७० ई. के आसपास ही वे पुरन्दरगुरुको अपने राज्यमें लाए होंगे । ये अवन्तिवर्मा मोखरीवंशीय राजा थे। शैव होने के कारण शिवोपासक पुरन्दरगुरुको अपने यहाँ लाना भी इनका ठीक ही था। इनके समयके सम्बन्ध में दूसरा प्रमाण यह है कि-वैसवंशीय राजा हर्षवर्द्धनकी छोटी बहिन राज्यधी, अवन्तिवर्माके पुत्र ग्रहवर्माको विवाही गई थी। हर्षका जन्म ई० ५९० में हुआ था । राज्यश्री उससे १ या २ वर्ष छोटी थी । ग्रहवर्मा हर्षसे ५-६ वर्ष बड़ा जरूर होगा । अतः उसका जन्म ५८४ ई० के करीब मानना चाहिए। इसका राज्यकाल ई० ६०० से ६०६ तक रहा है । अवन्तिवर्माका यह इकलौता लड़का था । अतः मालूम होता है कि ई० ५८४ में अर्थात् अवन्तिवर्माकी ढलती अवस्थामें यह पैदा हुआ होगा। अस्तु; यहाँ तो इतना ही प्रयोजन हैं कि ५७० ई० के आसपास ही अवन्तिवर्मा पुरन्दरको अपने यहाँ ले गए थे। ...
* देखो, भारतके प्राचीन राजवंश, द्वि० भाग पृ. ३७५ । देखो, भारतके प्राचीन राजवंश, द्वितीय भाग पृ० २२९ ।
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