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________________ ॥ प्रस्तावना ॥ सूत्रकार माणिक्यनन्दि जैनन्यायशास्त्र में माणिक्यनन्दि आचार्य का परीक्षामुखसूत्र आद्य सूत्रग्रन्थ है। प्रमेयरत्नमालाकार अनन्तवीर्याचार्य लिखते हैं कि "अकलङ्कवचोम्भोधेः उद्दधे येन धीमता । न्यायविद्यामृतं तस्मै नमो माणिक्यनन्दिने ॥" अर्थात्-जिस धीमान् ने अकलङ्क के वचनसागर का मथन करके न्यायविद्यामृत निकाला उस माणिक्यनन्दि को नमस्कार हो । इस उल्लेख से स्पष्ट है कि माणिक्यनन्दि ने अकलङ्कन्याय का मन्थन कर अपना सूत्रग्रन्थ बनाया है। अकलङ्कदेवने जैनन्यायशास्त्र की रूपरेखा बाँधकर तदनुसार दार्शनिकपदार्थों का विवेचन किया है। उनके लघीयस्त्रय, न्यायविनिश्चय, सिद्धिविनिश्चय, प्रमाणसंग्रह आदि न्यायप्रकरणों के आधार से माणिक्यनन्दि ने परीक्षामुखसूत्र की रचना की है। बौद्धदर्शन में हेतुमुख, न्यायमुख जैसे ग्रन्थ थे। माणिक्यनन्दि जैनन्याय के कोषागार में अपना एकमात्र परीक्षामुखरूपी माणिक्य को ही जमा करके अपना अमरस्थान बना गए हैं। इस सूत्रग्रन्थ की संक्षिप्त पर विशदसारवाली निर्दोष शैली अपना अनोखा स्थान रखती है । इसमें सूत्रका यह लक्षण "अल्पाक्षरमसन्दिग्धं सारवद्विश्वतो मुखम् । __ अतोभमनवद्यञ्च सूत्रं सूत्रविदो विदुः ॥" सर्वांशतः पाया जाता है। अकलङ्क के ग्रन्थों के साथही साथ दिमाग के न्यायप्रवेश और धर्मकीर्ति के न्यायबिन्दु का भी परीक्षामुख पर प्रभाव है। उत्तरकालीन वादिदेवसूरि के प्रमाणनयतत्त्वालोकालङ्कार और हेमचन्द्र की प्रमाणमीमांसा पर परीक्षामुख सूत्र अपना अमिट प्रभाव रखता है। वादिदेवसूरि ने तो अपने सूत्र ग्रन्थके बहु भाग में परीक्षामुख को अपना आदर्श रखा है। उन्होंने प्रमाणनयतत्त्वालोकालङ्कार में नय, सप्तभंगी और वाद का विवेचन बढ़ाकर उसके आठ परिच्छेद बनाए हैं जबकि परीक्षामुख में मात्र प्रमाण के परिकर का ही वर्णन होने से ६ परिच्छेद ही हैं । परीक्षामुख में प्रज्ञाकरगुप्त के भाविकारणवाद और अतीतकारणवाद की समालोचना की गई है। प्रज्ञाकर गुप्त के वार्तिकालङ्ककार का भिक्षुवर राहुलसांकृत्यायन के अटूट साहस परिश्रम के फलस्वरूप उद्धार हुआ है। उनकी प्रेसकापी में भाविकारणवाद और भूतकार. णवाद का निम्नलिखित शब्दों में समर्थन किया गया है "अविद्यमानस्य करणमिति कोऽर्थः ? तदनन्तरभाविनी तस्य सत्ता, तदेतदा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003838
Book TitlePramey Kamal Marttand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrakumar Shastri
PublisherSatya Bhamabai Pandurang
Publication Year1941
Total Pages920
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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