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________________ ६२ जै० सा० इ० - पूर्व पीठिका वह तीन दिन तक बिना खाये पिये उनके द्वार पर बैठा रहा । लौटने पर यमराजको यह समाचार ज्ञात हुआ और उन्होंने नचिकेता पर प्रसन्न होकर उसे तीन वरदान दिये। तीसरे वरदानको माँगते हुए नचिकेता कहने लगा- मरे हुए मनुष्य के विषय में संशय है । कोई तो कहते हैं कि मरनेके बाद वह रहता है कोई कहते हैं नहीं रहता। मैं यह जानना चाहता हूं कि वह रहता है या नहीं रहता ? नचिकेताका प्रश्न सुनकर यमराज बोले- हे नचिकेता ! इस विषय में पहले देवताओं ने भी सन्देह किया था परन्तु उनकी भी समझमें नहीं आया ; क्योंकि यह विषय बड़ा सूक्ष्म है । अतः मुझ पर दबाव मत डालो। इस प्रकार यमराज ने स्वर्ग के देवी प्रलोभन देकर भी नचिकेताको अपने प्रश्नसे विमुख करना चाहा और कहा - हे नचिकेता, मरनेके बाद आत्माका क्या होता है, इस बातको मत पूछो । किन्तु नचिकेता अपने प्रश्न पर ही दृढ़ रहा और बोला - यह मनुष्य मरणधर्मा है इस बातको जाननेवाला मनुष्य लोकका निवासी कौन मनुष्य है जो बुढ़ापे से रहित, न मरनेवाले श्राप जैसे महात्माओं का संग पाकर भी आमोद-प्रमोदका चिन्तन करता हुआ बहुत काल तक जीवित रहना पसन्द करेगा | अतः परलोक सम्बन्धी आत्म ज्ञानके विषय में मेरा सन्देह दूर कीजिये । तब यमराजने उसकी दृढ़ता से प्रसन्न होकर उसे आत्मतत्त्व का उपदेश किया शब्दम स्पर्शमरूपमव्ययं तथारसं नित्यमगन्धवच्च यत् । अनाद्यनन्तं महतः परं ध्रुवं निचाम्य तन्मृत्युमुखात्प्रमुच्यते ||१५|| जो शब्द, स्पर्श, रूप, अव्यय, अरस, नित्य और अगन्ध है, जो अनादि अनन्त महत्तत्वसे भी विलक्षण और ध्रुव है, उस आत्माको जानकर पुरुष मृत्युके मुखसे छूट जाता है । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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