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प्राचीन स्थितिका अन्वेषण
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उक्त तथ्य पर प्रकाश डालनेके लिये याज्ञिक क्रियाकाण्ड तथा वैदिक देवताओंकी ओर उपनिषदोंका रुख कैसा है यह स्पष्ट करना उचित होगा।
उपनिषद और यज्ञ तथा वैदिक देवता उपनिषद् वैदिक क्रियाकाण्डके विरुद्ध हैं। वृह० उप० (१-४-१०) में कहा है कि-'उस ब्रह्मको जो जानता है कि 'मैं ब्रह्म हूं' वह सर्व हो जाता है। उसके पराभवमें देवता भी समर्थ नहीं होते; क्योंकि वह उनका आत्मा ही हो जाता है। जो अन्य देवताकी उपासना करता है वह देवताओंका पशु है। “देवताओंको यह प्रिय नहीं है कि मनुष्य ब्रह्मात्मतत्त्वको जाने।' आगे ( ३-६-२१) लिखा है 'यम किसमें प्रतिष्ठित है ? यज्ञमें । यज्ञ किसमें प्रतिष्ठित है ? दक्षिणामें ।'
छा० उ० (१-१२) में यज्ञमें जलूस बनाकर जानेवाले ऋषियोंको कुत्तोंका जलूस बतलाया है। कथा इस प्रकार है
कुछ ऋषि स्वाध्याय करनेके लिये गाँवसे बाहर एक निर्जन स्थानमें गये। उन पर अनुग्रह करनेके लिये एक कुत्ता प्रकट हुआ। इसके बाद और भी कई कुत्ते उस पहले कुत्तेके पास श्राकर बोले-'श्रीमान् ! उद्गीथका गान करके हमारे लिये अन्न प्रस्तुत करें, हम भूखे हैं ।' पहला कुत्ता बोला- 'कल प्रातः इसी स्थानमें तुम लोग मेरे पास आना ।' निर्दिष्ट समय पर वे कुत्ते वहाँ एकत्र हुए। और जिस प्रकार यज्ञ कर्ममें उद्गाता एक दूसरेसे मिलकर चलते हैं, ठीक उसी प्रकार वे एक दूसरेसे जुटकर चलने लगे। फिर उन्होंने एक जगह बैठकर 'हाउ हाउ' करके सामगान प्रारम्भ किया-हे सबकी रक्षा करनेवाले परमात्मन् !
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