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श्रुतपरिचय
६८९ के और आठ क्षत्रिय' परिघ्राजकोंके नाम दिये हैं तत्पश्चात् अग ५ की तरह ब्राह्मण साहित्यके ग्रन्थोंका निर्देश है
तीसरे स्थानांगकी तरह ७२ कलाएँ और सात निन्हबोंका भी नाम आता है। अग ५-६ की तरह कुछ विदेशी दासियोंका भी निर्देश है यथा-सिंहली, भारवी, पुलिंदी, मुरुण्डी, पारसी आदि । ग्रन्थके अन्तमें २२ गाथाएँ हैं जिनमें सिद्धोंका वर्णन है इस उपांग पर अभयदेवकी टीका और पार्श्व चन्द्रकी अवचूरी है।
२-इसका नाम रायपसेणइज या राज प्रश्नीय है । ग्रन्थों के नामका संस्कृतरूप अशुद्ध है ऐसा डा. वेबरका कहना था। ऐसा अनुमान किया जाता है कि मूलतः इस ग्रन्थका सम्बन्ध प्रसेनजित्से था। उसके स्थानमें परासका निर्देश मिलता है। डा. वेबरने लिखा है कि डा० ल्युमनने लिखा है कि बौद्ध त्रिपिटक दीघनिकायमें एक 'पयासी सुत्त' नामक प्रकरण है। उसके साथ इस उपांगका घनिष्ठ सम्बन्ध होना चाहिये क्योंकि इसमें भी राजा पऐसीकी चर्चा है। __ अतः या तो इस दूसरे उपांग और उक्त बौद्धनिकाय दोनोंका मूल आधार एक है अथवा उपांग दो का आधार उक्त बौद्ध निकाय है।
ग्रन्थका आरम्भ इस प्रकार होता है-सूर्याभ नामक देव अपनी विभूतिके साथ भगवान महावीरकी वन्दनाके लिये आता
१--'सीलई ससिहारे (य) णग्गई भग्गई ति। विदेहे रायाराया रायारामे वलेति अ । 'अोप० सू०, पृ० १७२ ।
२-हि. इं. लि. ( विन्ट. ), जि. २, पृ. ४५५, । ३-ई. ए., जि. २० पृ. ३६६-३७०।
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