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श्रुतपरिचय तौरसे उल्लेखनीय है । इससे यह सिद्ध होता है कि देवर्द्धि गणिके पश्चात् आगमिक साहित्यका न केवल पुनः विभाजन हुआ है किन्तु उनका पुनःसंस्कार भी किया गया है। ___ नन्दिसूत्र और अनुयोग द्वार दोनों गद्यमें रचे गये हैं यद्यपि बीच-बीचमें गाथा भी आती हैं। नन्दीके प्रारम्भमें पचास गाथाएँ हैं। प्रथम गाथाके द्वारा तीर्थङ्कर सामान्यका स्तवन किया है। गाथा दो और तीनमें बीर भगवानका स्तवन है। तत्पश्चात् १४ गाथाओंसे संघका स्तवन है। जैन-साहित्यमें संघका स्तवन इतना विस्तार से मेरे देखने में नहीं आया। गाथा १८-१६ में चौबीस तीर्थङ्करोंका निर्देश है। गाथा २०-२१ में बीर भगवानके ग्यारह गणधरोंका निर्देश है । गाथा २२ में बीर शासनका जयकार है। गाथा २३ से स्थविरावली प्रारम्भ होती है, जिसके स्थविरोंकी नामावली इस प्रकार है
१ सुधर्मा, २ जम्बू, ३ प्रभव, ४ शय्यंभव, यशोभद्र, ६ सम्भूत, ७ भद्रबाहु, ८ स्थूलभद्र, ६ महागिरि, १० सुहस्ती, ११ बलिस्सह, ( बहुलका सहोदर), १२ स्वाति, १३ श्यामार्य, १४ शाण्डिल्य, १५ आर्य जीत धर, १६ समुद्र, १७ मंगु, १८ आर्य नन्दिल, नागहस्ती, २० रेवती नक्षत्र, २१ सिंह २२ स्कन्दिलाचार्य, २३ हिमवन्त, २४ नागार्जुन, २५ भूत दिन्न २६ लोहित्य और २७ दृष्यगणि ।
नन्दिसूत्र में प्रदत्त यह स्थविरावली सुहस्तीसे आगे, कल्प सूत्रकी स्थविरावलीसे भिन्न हो जाती है। अवचूरी में इसका कारण स्पष्ट करते हुए लिखा है कि सुहस्तीकी शिष्य परम्पराका
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