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श्रुतपरिचय
६५६ लिच्छवि राजाश्रीं और बेज्जी विदेह पुत्र की विजय, सहस्रानीक के प्रपौत्र और शतानीक के पुत्र कौशाम्बी नरेश उदयन की चाची जयन्तीका, जो वैशाली श्रावक की संरक्षिका थी, महा. वीर के उपदेश से भिक्षुणी बनना आदि। - शतक नौ और बारह में कुछ विदेशी दासियों के नाम आये हैं, जो एक ब्राह्मण परिवार में काम करती थीं। उनमें पल्हवीया
आरवी, वहली, मुरंडी और पारसी नाम उल्लेखनीय हैं । ये नाम ईसा की दूसरी शताब्दी से चौथी शताब्दी तक के समय का स्मरण कराते हैं। और इस तरह इनका मूल उद्गम हमें गुप्त काल में ले जाता है । ( इ० एं०, जि . १६. पृ० ६५ )।
६- ज्ञात धर्मकथा-बहुतसे आख्यान और उपाख्यानोंका कथन है, (त० वा०, पृ० ७३) । तीर्थङ्करोंकी धर्मकथाओंके स्वरूप का वर्णन करता है ( क. पा०, भा० १, पृ० १२५ ) । तीर्थङ्करोंकी धर्म देशनाका, सन्देहको प्राप्त गणधर देवके सन्देह को दूर करनेकी विधिका तथा अनेक प्रकार की कथा
और उपकथाओंका वर्णन करता है ( षटखं०, पृ० १०२)। ज्ञातों के नगर, उद्यान, चैत्य, वनखण्ड, समवसरण, राजा, माता पिता, धर्माचार्य, धर्मकथा, इहलौकिक पारलौकिक ऋद्धि विशेष, भोग परित्याग, प्रव्रज्या, पर्याय, श्रुत परिग्रह, तप, उपधान, संलेखना, प्रायोपगमन, देव लोक गमन, सुकुल में जन्म लेना, शेधिलाभ, अन्तः क्रिया आदि का कथन करता है ( नन्दी० सू० ५१, सम० सू० १४१)।
इसका प्राकृत नाम श्वेताम्बर साहित्यमें णायाधम्मकहा और दिगम्बरा साहित्यमें णाहधम्मकथा है। 'णाय' का संस्कृत रूप ज्ञात और 'णाह' का संस्कृत रूप नाथ होता है।
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