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जै० सा० इ०-पूर्वपीठिका १२ प्राणावाय-आयुर्वेद के काय चिकिसा आदि आठ अंगों का, भूतिकर्म का, जाँगुलि प्रक्रम का और प्राणायाम का विस्तार से कथन करता है ( त० वा० पृ० ७७ । षटखं० पृ० १२२ । क० पा० पृ० १४६ ) भेद सहित आयु प्राण का तथा अन्य प्राणों का कथन करता है ( नन्दी० चू०, मलय० सू०५६। सम० अभ०, सू० १४७)। इसमें दस वस्तु, दो सौ पाहुड़ और तेरह करोड़ पद हैं । श्वेताम्बर उल्लेख के अनुसार इसमें एक करोड़ ५६ लाख पद हैं।
१३ क्रिया विशाल-लेख आदि बहत्तर कलाओं का, स्त्री सम्बन्धी चौसठ गुणों का, शिल्प का, काब्य के गुण दोषों का, छन्द रचनाओं का तथा क्रिया के फल के भोक्ताओं का कथन करता है। (त० वा०, पृ० ७७ । षट्खं० पु०१ पृ० १२२) । नृत्य शास्त्र गीतशास्त्र लक्षणशास्त्र छन्दशास्त्र अलङ्कारशास्त्र तथा नपुसक स्त्री और पुरुष के लक्षण आदि का कथन करता है ( क० पा० पृ० १४८)। कायिकी आदि क्रियाओं का, सभेद संयम क्रिया का, तथा छन्द क्रिया का वर्णन करता है ( नन्दी० मलय० सू० ५६ । सम० अभ० १४७ सू० )। इसमें दस वस्तु, दो सौ पाहुड़ और नौ करोड़ पद हैं। ___१४ लोक बिन्दुसार-आठ व्यवहार, चार बीज, परिकर्म
और राशि विभाग का कथन करता है। (त० वा०, पृ ७८ । षट्खं० पु. १, पृ० १२२)। परिकर्म, व्यवहार, रज राशि, कलासवरण (गणित का एक प्रकार ), गुणकार, वर्ग घन, बीजगणित और मोक्ष के स्वरूप का कथन करता है ( क. पा० भा० १, पृ० १४८)। लोक विन्दुसारको इस लोकमें अथवा शास्त्र रूपी लोक में विन्दुसार कहा है ( नन्दी चू०, मलय० सू० ५६ ।
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