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श्रुतपरिचय था, अथवा जो उन सब का मूल गुरु था, उसे ही आद्य कठ कहा है। पाणिनि ने कठों का स्वतंत्र उल्लेख किया है। यह चरकों का अति प्रसिद्ध चरण' था, जिसके अनुयायी गाँव-गाँव में फैल गए थे। कठों की शाखा के विषय में कहा जाता था कि वह अत्यन्त विशाल और सुविरचित ग्रन्थ था । ( पा० भा०, पृ० ३१८ ) । इन्ही कठों के आद्य गुरु का उल्लेख अकलंक देव ने अज्ञान वादियों में क्रिया प्रतीत होता है।
माध्यन्दिन-शुक्ल यजुर्वेद की एक शाखा का नाम माध्य. न्दिन शाखा है। इस समय यही शाखा सब से अधिक पढ़ी जाती है । संहिता के हस्तलिखित ग्रन्थों में इसे बहुधा यजुर्वेद या वाजसनेय संहिता ही कहा गया है । इसके संस्थापक माध्यन्दिन ऋषि का ही निर्देश अकलंक देव ने अज्ञानवादियों में किया जान पड़ता है। ___ मौद और पैप्पलाद-मौद और पैप्पलाद दोनों अथर्ववेदके चरण थे। इन दोनों चरणोंमें ज्ञानसाहचर्य था। पाणिनिने 'कार्तकौजपादि गणमें (६-२-३७) 'कठकलापाः' कठकौथुमाः
१-'चरण शब्दाः कठ कलापादयः ।'-का०वृ० ४-२-४६ ।
२-'ग्रामे ग्रामे च काठकं कालापकं च प्रेच्चते ।। पा० महा० ४-३-१०१।
३--'कठं महत् सुविहितम्'-पा० महा० ४-२-६६, वा० २ ।
४-पात० महा० के पस्पशाह्निकमें अथर्ववेदको नवशाखा युक्त कहा है । यथा-'नवधाथर्वणो वेदः ।' इन नौ शाखाओंके विषयमें प्राथर्वण परिशिष्ट चरणव्यूहमें लिखा है-'तत्र ब्रह्मवेदस्य नव भेदा भवन्ति । तद्यथा पैप्पलादाः स्तौदाः मौदाः शौनकीयाः जाजलाः जलदाः ब्रह्मवदा देवदर्शाः चारणवैद्याः चेति । - वै. वा. इ., भा. १, पृ. २२० ।
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