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श्रुतपरिचय
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वाल्कल-वाल्कल या वल्कल नाम अशुद्ध प्रतीत होता है। सिद्धसेनगणिकी तत्वार्थ टीका ( भा० २, पृ० १२३ ) में वाष्कल नाम दिया है । यही शुद्ध पाठ जान पड़ता है । वाष्कल ऋग्वेद का महत्त्वपूर्ण चरण था। शाकलों और वाष्कलों का साथ-साथ उल्लेख भी देखा जाता है । चरण एक प्रकार की शिक्षा संस्था थी जिसमें वेद की एक शाखा का अध्ययन शिष्य समुदाय करता था और जिनका नाम मूल संस्थापक के नाम से पड़ता था । वाष्कल चरण के प्रमुख शिष्य पराशर थे जिन्होंने पाराशय शाखाका प्रारम्भ किया। पाराशर्य लोगों को कोई स्वतंत्र शाखा या छन्द ग्रन्थ न था, उसके लिये वे वाष्कल शाखा पर निर्भर थे। ( पा० भा०, पृ० ३१५)। सम्भवतया अकलंक देवने वाष्कल चरण के संस्थापक ऋषि का ही नाम अज्ञानवादियों में लिया प्रतीत होता है।
कुथुमि-साम वेद की एक शाखा का नाम कुथुम है। वायु. पुराण अध्याय २३ में द्वैपायन से पूर्व के प्रत्येक द्वापर के अन्त में होनेवाले २७ व्यासों के नाम लिखे हैं। उनमें १६ वां व्यास भरद्वाज था। उसके समकालीन हिरण्य नाभ कौसल्य लौगाति
और कुथुमि थे। ये सामवेदाचार्य द्वैपायन व्यास से कुछ ही पहले हुए थे ( वै. वा० इ०, भा० १, पृ० ७० ) । सम्भवतया अकलंक देव ने सामवेदाचार्य कुथुमि का ही निर्देश अज्ञानवादियों में किया है।' __ सात्यमुनि-पाणिनि ने साम वेद के अन्य चरणों में शौचि. वृक्षि और सात्यमुनि चरणों का नाम लिया है । (४-१-८१) ।
१-आश्व लायन गृह्य सूत्रकी नारायण वृति में लिखा है-'शाकलसमाम्नायस्य वाष्कलसमाम्नायस्य चेदमेव सूत्रं गृह्यं चेत्यध्येटप्रसिद्धम् ।'
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