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________________ ५६५ श्रुतपरिचय है। उसमें तीसरे नम्बरका नाम 'मधुक पैगय' है यह नाम 'मांध पिक' से बहुत मिलता जुलता है। हारीत - श्री भगवदत्तजी ने लिखा है (पृ. २८) कि हेमाद्रि श्राद्धकल्प में पृ० ७५ पर हारोत स्मृतिपर टीका लिखनेवाले में जयसेनका स्मरण किया गया है। एक हरीत धर्मसूत्रके रचयिता हुए हैं (हि. ध० पृ० ७०-७५ ) । वे कृष्ण यजुर्वेद शाखाके थे। ये दोनों एक ही हैं या भिन्न हम नहीं कह सकते । फिर भी अकलंक देवने इन्हीं में से एकका निर्देश किया जान पड़ता है। मुण्ड-एक उपनिषद्का नाम मुण्डक है । शायद यह उसीसे सम्बद्ध हो ? आश्वलायन-षड्गुरुशिष्यने ऋक् सर्वानुक्रमणी वृत्तिकी भूमिकामें लिखा है कि शौनकने ऋग्वेद सम्बन्धी दस ग्रन्थ लिखे और उनके शिष्य आश्वलायनने तीन ग्रन्थ लिखे-श्रौतसूत्र, गृह्यसूत्र और आरण्यक चौथा। (वै० वा० इ०, भा०२, पृ० २२६)। इन्हीं प्रसिद्ध आश्वलायनका उल्लेख अकलंक देवने किया जान पड़ता है। शेष क्रियावादियोंके विषयमें हमें कोई जानकारी प्राप्त नहीं हो सकी। ____ मरीचिकुमार, कपिल, उलूक, गार्ग्य, व्याघ्रभूति, वाद्वलि, माठर, मौद्गलायनको अकलङ्कदेवने अक्रियावादी कहा है। और सिद्धसेनगणिने इन्हें क्रियावादी कहा है। ___ मरीचिकुमार-डा० Schrader भगवान ऋषभदेवके पौत्र मरीचिकुमारको ही उल्लिखित मरीचिकुमार मानते हैं। और यह उचित भी प्रतीत होता है क्योंकि मरीचिकुमारके पश्चात् ही कपिल का नाम है जो सांख्य दर्शनका संस्थापक था। जिन सेनने अपने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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