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श्रुतपरिचय
५६१ अपने विचार पहले लिख आये हैं। उपांग छै जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति की टीकामें टीकाकार शान्तिचन्द्रने कुछ प्राचीन' गाथाएँ दी हैं जो डा. वेबरने अपने लेखमें उद्धृत की हैं। उन गाथाओंमें केवल छै अंगों और तीन छेद सूत्रोंका निर्देश करके यह
there are contained dates which refer to a period later by 400 years. The whole legend appears to me after all to be nothing more than an imitation of the Budhist legend of the council of Ashok etc. And thus to have little claim to credence. इ० ए० जि० १७ पृ० २७६. ।
१-'तिवरिसपरियागस्त उ अायारपकम्पनाममज्झयणं ।
चऊवरिसस्स य सम्म सूयगडं नाम अंगं ति ॥१॥ दसकप्पववहारा संवच्छरपणगदिक्खियस्से वा। थाणं समवाश्रो चिय अंग एते अट्ठवासस्स ॥२॥ दसवासस्स विवाहो एगारसवासगस्स इमे उ। खुद्दियविमाणमाए अज्झयरणा पंच णायव्वा ॥३॥ वारसवासस्स तहा अरुणोवायाइ पंच अज्झयणा । तेरसवासस्स तहा उहाण सुयाइया चउरो ॥ ४ ॥ चोद्दस वासस्स तहा श्रासीविसभावणं जिणा वेति । पन्नरसवासगस्स य दिट्ठाविसभावनं तहा य ॥५॥ सोलसवासाईसु य एगुत्तरबुड्डिऐसु जह संखं । चारण भावणमह सुविण भावणा ते अगनिसग्गा ॥६॥ एगूण वासगस्स दिहिवाश्रो दुवाल संगं । संपुन्नवीसवरिसो अणुवाई सव्वसुत्तस्स चि ॥ ७ ॥'
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