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________________ श्रुतावतार - ५२७ भावनगरसे प्रकाशित कल्पसूत्र भाग छकी प्रस्तावनामें मुनिवर पुण्यविजयजीने लिखा है कि स्थविर अगस्त्यसिंह विरचित प्रस्तुत दश वैकालिक चूर्णिग्रन्थ ऐसा अलभ्य या दुर्लभ्य ग्रन्थ है कि जो वलभीमें श्रीदेवद्धि गणी क्षमाश्रमणने संघ एकत्र करके पाठ निर्णय किया उससे पहलेके प्राचीन कालमें जैन आगमोंके पाठोंमें कितनी विषमता हो गई थी, उसका थोड़ा बहुत विचार हमें देता है। आज भी वृहत्कल्पसूत्र, निशीथ सूत्र, भगवतीसूत्र वगैरहकी जो प्राचीन आदर्श प्रतियां अपने सामने वर्तमान हैं, उनको देखनेसे पाठभेदोंकी विविधता और विषमताका तथा भाषा-स्वरूपकी विचित्रताका ध्यान आ सकता है।""अपनी वर्तमान नियुक्तियों में पीछेसे कितना प्रक्षेप हुआ है यह जाननेके लिए अगस्त्यसिंहकी चूर्णि अति महत्त्वका साधन है। स्थविर अगस्त्यसिंहकी चूर्णिमें दशवैकालिकके प्रथम अध्ययनकी नियुक्ति गाथाएं केवल चौवन हैं, जबकि आचार्य श्री हरिभद्रकी टीकामें प्रथम अध्ययनकी नियुक्तिगाथाएं एकसौ छप्पन हैं। समस्त दशवैकालिक सूत्रकी नियुक्तिगाथाओंकी संख्याका यदि विचार किया जाये तो आचार्यहरिभद्रकी टीका में गाथा संख्या अधिक हैं"। अतः यह निश्चित है कि वलभी वाचनाके पश्चात् भी आगम साहित्यमें बहुत रद्दोबदल की गई है। वर्तमान जैन आगम और दिगम्बर परम्परा - आज जो जैन आगम या अंग साहित्य उपलब्ध है उसे दिगम्बर जैन सम्प्रदाय मान्य नहीं करता, यह सबको विदित Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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