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० सा० इ० - पूर्व पीठिका
उसे विनशन कहते थे । अतः इस कालमें परव की नदियोंका उल्लेख होना स्वाभाविक है । शतपथ ब्राह्मण में ( १, १-१-१४ ) सदानीराका उल्लेख आता है जो कोसलों और विदेहों के मध्य में सीमाका कार्य करती थी ।
उक्त वैदिक साहित्य में विभिन्न स्थानोंके नाम आते हैं । जनमेजय परीक्षितकी राजधानीका नाम आसन्दीवत् था जहाँ उसके अश्वमेध यज्ञके घोड़ेको बाँधा गया था ( श० ब्रा० १३, ५-४-२ ) । यह कुरुक्षेत्र में थी। इसे ही विद्वान् हस्तिनापुर कहते हैं (वै० ए० पृ० २५१ ) । गंगाके प्रवाह में इसके बह जानेपर कौशाम्बीको राजधानी बनाया गया था ।
शतपथ ब्राह्मण में कपिलानाम आता है जो बदायूँ और फर्रुखाबाद जिलोंके मध्य में है । नैमिषारण्य नाम भी आता है । यह अवध रुहेलखण्ड रेल्वेके निमसर स्टेशनसे कुछ दूरी पर था ऐसा माना जाता है !
जैसा कि हम लिख आये हैं उक्त वैदिक साहित्य में तीन विस्तृत भूभागों का निर्देश है- ब्रह्मावर्त या आर्यावर्त, मध्यदेश और दक्षिणापथ । एतरेय ब्राह्मण में ( ८- १४ ) सर्व प्रथम समस्त देशको पांच भागों में विभाजित किया गया है - धुवा मध्यमा प्रतिष्ठा, दिश या मध्यदेश, प्राचीदिश, दक्षिणादिश, प्रतीचीदिश और उदीचीदिश । किन्तु इन विभागों का विस्तार और सीमा नहीं बताई है।
ऊपर जिन जातियों या कवीलोंका निर्देश किया है वे भारतके उक्त पांच विभागोंमेंसे प्रथम दो भागों (मध्य और पूर्वीय प्रदेश ) में रहते थे जैसा कि एतरेय ब्राह्मणमें लिखा है । एतरेय ब्राह्मण में ही दक्षिणादिशके केवल एक सात्वन्तों का ही निर्देश है । किन्तु इनके सिवाय विदर्भ, निषाध और कुन्ती जातियाँ भी थीं ।
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